भट न थे। सोम ने क्षण- भर ही में कठिनाई को समझ लिया । सोम चाहते थे कि वे बन्धुल का अनुगमन करके दूसरे कक्ष में प्रविष्ट हों , परन्तु तीनों भटों ने कठिन अवरोध किया । प्रारम्भ ही में सोम एक घाव खा गए । इसी क्षण शम्ब ने कोष्ठक में प्रवेश कर दण्ड सत्थक का एक भरपूर हाथ एक भट के सिर पर मारा जिससे उसके कपाल के दो खण्ड हो गए और रक्त की बित्ता भर फुहार उठ खड़ी हुई । ठीक समय पर शम्ब का साहाय्य पाकर सोम ने हर्ष से चिल्लाकर कहा - “वाह शम्ब , खूब किया ! रोक इन दोनों को , मैं भीतर जाता हूं । " और सोम दुर्धर्ष वेग से खड्ग फेंकते हुए तलभूमि में प्रविष्ट हो गए। बन्धुल खड्ग ऊंचा किए विदुडभ का हनन करने जा रहा था । बन्धुल ने कहा - “ दासीपुत्र, बता , महाराज कहां हैं ? या मर ! ”विदूडभ लौह- शृंखला से आबद्ध दीवार में चिपके हुए चुपचाप खड़े थे । उनके होठ परस्पर चिपक गए थे, उनकी आंखों से घृणा और क्रोध प्रकट हो रहा था । सोम ने पहुंचकर बन्धुल को ललकारते हुए कहा - “ बन्धुल , शृंखलाबद्ध बन्दी की हत्या से तेरा वीरत्व कलुषित होगा । आ इधर, मैंने अभी तक मल्लों का खड्ग देखा नहीं है। “ तब देख । तू कदाचित् वही चोर की भांति अन्तःपुर में घुसनेवाला मागध है ? " बन्धुल ने घूमकर कहा। “ वही हूं बन्धुल ! " " तब ले ! " बन्धुल ने करारा वार किया । सोम यत्न से बचाव और वार करने लगे। दोनों अप्रतिम सुभट उस छोटे कक्ष में भीषण खड्ग-युद्ध में व्यस्त हो गए । युवराज विदूडभ ने चिल्लाकर उदग्र हो कहा - “ अरे वाह मित्र, ठीक आए। परन्तु खेद है कि मैं सहायता नहीं कर सकता । ” फिर भी उन्होंने आगे बढ़कर शृंखलाबद्ध दोनों हाथ ज़ोर से बन्धुल के सिर पर दे मारे। बन्धुल के सिर से रक्त फूट पड़ा , उसने पलटकर राजकुमार पर खड्ग का एक वार किया । इसी क्षण सुयोग पा सोम ने बन्धुल के वाम स्कन्ध पर एक भरपूर हाथ मारा । बन्धुल और राजकुमार दोनों ही गिरकर तड़पने लगे । - सेनापति कारायण हताश होकर जब गर्भमार्ग में लौहार्गल को खोल नहीं सके तो उन्होंने द्वार भंग करने का उद्योग किया । इसी समय द्वार खुला और कुछ भट सामने दीख पड़े । ये भट बन्धुल के थे, जो नीचे बन्दीगृह में युद्ध होता देख सहायता को लौटे थे। परन्तु सामने शत्रु को देख वे पीछे भाग पड़े । कारायण भी उनके पीछे अपने भट लेकर दौड़े । उनके पास प्रकाश था , दौड़ में बाधा नहीं हुई । बन्धुल के भट छत के छेद से प्रकोष्ठ में कूद पड़े । यही कारायण ने किया । इस समय एक भट शम्ब से जूझ रहा था । इनमें से एक ने शम्ब पर प्रहार किया और वह भीतर तलगृह में घुस गया । ठीक इसी समय बन्धुल और युवराज घायल होकर गिरे थे। सोम ने आहट पाकर पीछे शत्रु को देखा, परन्तु उनके पीछे कारायण और उनके भटों को आते देख हर्षनाद किया । देखते - ही - देखते सब भट काट डाले गए । बन्धुल को बन्दी कर लिया गया तथा आहत राजकुमार को लेकर वे सब गर्भमार्ग से चलकर दुर्ग से बाहर अट्टालिका में लौट
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