पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३१९

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सोम ने कहा - " तो भगवन, आप जैसा मेरे लिए हितकर समझें। " “ यही तो भद्र ! तूने विदूडभ को राजा बनाया , यह तेरा सत्कर्म हुआ । पर शील का भार अब भी तुझ पर है, उसे भी उतार । वह तेरे लिए सह्य न होगा , कल्याणकर न होगा । " " भगवान् श्रमण जैसा ठीक समझें। " । " उसे तू कोसल की पट्टराजमहिषी बनने दे भद्र ! बस , इसी में सब हो गया । " सोम का मुंह रक्तहीन श्वेत हो गया । मृत पुरुष की भांति शय्या पर वह पड़ रहे , परन्तु उन्होंने स्थिर वाणी से कहा " भगवन् , ऐसा ही हो । आप सत्य कहते हैं , मैं वह भार वहन नहीं कर सकता। " " तेरा कल्याण हो आयुष्मान् ! मैं कुमारी से कहूंगा , राजकुमार से भी । " “ आप्यायित हुआ भगवन् , चिरबाधित हुआ भगवन् ! ” सोम ने यन्त्रवत् कहा। वह काष्ठवत् शय्या में पड़े रह गए। कुण्डनी ने सुना । उसका मुंह सूख गया । भगवन् महावीर कक्ष से धीरे- धीरे चले गए ।