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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३२७

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91 . सुप्रभात दीपस्तम्भ पर धरे सुवासित दीपों की लौ मन्द पड़ गई , गवाक्षों से उषा की पीत प्रभा कक्ष में झांकने लगी। अलिन्द से वीणा की एक झंकार के साथ एक कोमल कण्ठस्वर निषाद का वाद देकर आरोह- अवरोह में चढ़ - उतरकर वातावरण को आन्दोलित कर गया । अम्बपाली ने दुग्धफेन- सम शैया पर अंगड़ाई ली और अलस भाव से अपने मकड़ी के जाले के समान अस्त -व्यस्त परिधान को कुछ व्यवस्थित किया, उत्फुल्ल कमलदल के समान अपने नेत्रों को उसने खोलकर गवाक्ष की ओर देखा । वहां से सुरभित मलय - गन्ध लिए वासन्ती वायु प्रभात की स्वर्णरेख के साथ कक्ष में आ रहा था । कमल की पंखुड़ियों की भांति उसके होठ हिले , उसने सस्मित - स्वगत कहा - मदलेखा गा रही है। " उसने हाथ बढ़ाकर रजत - दण्ड से कांस्यघण्ट पर आघात किया । तत्क्षण एक आसन्न -प्रस्फुटित कलिका - सी सुन्दरी ने अवनत मस्तक हो मृदु- मन्द मुस्कान के साथ अम्बपाली को अभिवादन करके कहा - “ देवी प्रसन्न हों , आज मधुपर्व का सुप्रभात है। " अम्बपाली ने हंसकर कण्ठ से मुक्तामाल उतार उस पर फेंकते हुए कहा - "तेरा कल्याण हो हला, जा शृंगार - गृह को सुव्यवस्थित कर। " . सुन्दरी मुक्तामाल को कण्ठ में धारण करके हंसती हुई चली गई । अम्बपाली अलस देह लिए चुपचाप शय्या पर पड़ी एक गवाक्ष से कक्ष में आती हुई स्वर्ण- रश्मि को देखती रहीं । उनका मन बाहर अलिन्द में झंकृत वीणा की मधुर ध्वनि के साथ मदलेखा के कोमल औडव आलाप में लग रहा था । एक दासी ने आकर गवाक्षों की रंगीन चक्कलिकाएं उघाड़ दीं । दूसरी दासी गन्धद्रव्य जलाकर गन्धस्तम्भों पर रख गई। दो - तीन दासियों ने विविध मधु- गन्ध वाले पुष्पों के उरच्छद -तोरण बांध दिए । कक्ष सुवास और आलोक से सुरक्षित और उज्ज्वल हो उठा । मधुलता ने आकर निवेदन किया - “ शृंगार- गृह तैयार है और नगर के मान्य सामन्तपुत्र एवं सेट्टिपुत्र देवी को मधुपर्व के प्रभात की बधाई देने उपस्थित हैं । ” अम्बपाली ने हंसकर अंगड़ाई ली । वह शैया त्यागकर उठी । सम्मुख वृहत् आरसी में अपने मद- भरे नवयौवन को एक बार गर्व- भरे नेत्रों से देखा , फिर कहा - " हला , शृंगार - गृह का मार्ग दिखा और आगत नागरिकों से कह कि मैं उनकी उपकृत हूं तथा अभी मैं आती हूं। " _ मधुलता एक बार आदर के लिए झुकी और ‘ इधर से देवी कहकर पुष्प -भार से झुकी माधवीलता की भांति एक ओर चल दी । पीछे-पीछे उद्दाम यौवन का मद बिखेरती हुई अम्बपाली भी ।