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वैशाली के जनपद को सन्देश दे दीजिए कि मैंने उस धिक्कृत कानून को अंगीकार कर लिया है। आज से अम्बपाली कुलवधू की सब मर्यादाएं, सब अधिकार त्यागकर वैशाली की नगरवधू बनना स्वीकार करती है।"
वृद्ध गणपति ने कांपते हुए दोनों हाथ ऊंचे उठाकर कहा––"आयुष्मती होओ देवी अम्बपाली! तुम धन्य हो, तुमने वैशाली के जनपद को बचा लिया।"
उनकी आंखों से झर-झर आंसू गिरने लगे और वे नीची गर्दन करके धीरे-धीरे वहां से चले गए।
अम्बपाली कुछ देर तक टकटकी लगाए, उस आहत वृद्ध राजपुरुष को देखती रही। फिर वह उसी स्फटिकशिला-पीठ पर, उसी धवल चन्द्र की ज्योत्स्ना में, उसी स्तब्ध-शीतल रात में, दोनों हाथों में मुंह ढांपकर औंधे मुंह गिरकर फूट-फूटकर रोने लगी।
नीलपद्म सरोवर की आन्दोलित तरंगों में कम्पित चन्द्रबिम्ब ही इस दलित-द्रवित हृदय के करुण रुदन का एकमात्र साक्षी था।