93. रंग में भंग युवराज स्वर्णसेन को लेकर उनका अश्व जो बिगड़कर भागा तो युवराज के बहुत प्रयत्न करने पर भी बीच में रुका नहीं । स्वर्णसेन पर भी सिंह के आक्रमण का आतंक तो था ही , देवी अम्बपाली के सिंह द्वारा आक्रान्त होने का भारी विषाद छा गया । सूर्यास्त के समय जब अत्यन्त अस्त -व्यस्त दशा में अकेले स्वर्णसेन मधुवन में पहुंचे, तो वहां बड़ा कोलाहल हो रहा था । जगह-जगह लकड़ी के बड़े-बड़े ढेर जल रहे थे और उन पर शशक, वराह, महिष और तित्तिर भूने जा रहे थे। ढेर के ढेर मैरेय , द्राक्षा, माध्वीक पात्रों में भरी - धरी जा रही थी और उसे पी -पीकर सब लोग उन्मत्त हो रहे थे। मांस के भूनने की सोंधी सुगन्ध आ रही थी । कोई ताल - सुर से और कोई ताल - सुर भंग होकर भी निर्द्वन्द्व गा रहे थे। स्वर्णसेन अपने अश्व पर लटक गए थे, अश्व पसीने से तर था और मुख से फेन उगल रहा था । ज्योंही लोगों की दृष्टि उन पर पड़ी , वे स्तम्भित - से आमोद -प्रमोद छोड़कर उनकी ओर दौड़े । देखते -देखते सामन्तपुत्रों , सेट्टिपुत्रों और राजकुमारों ने उन्हें घेर लिया , वे विविध भांति प्रश्न करने लगे। देवी अम्बपाली को न देखकर प्रत्येक व्यक्ति विचलित हो रहा था । सहारा देकर सूर्यमल्ल ने युवराज को अश्व से उतारा, थोड़ी गौड़ीय एक पात्र में भरकर मुंह से लगाई, एक ही सांस में पीकर युवराज ने वेदनापूर्ण स्वर में कहा - “मित्रो, अनर्थ हो गया ! देवी अम्बपाली को सिंह आक्रान्त कर गया ! " वज्रपात की भांति यह समाचार सम्पूर्ण शिविर में फैल गया । सभी आमोद- प्रमोद रुक गए और सर्वत्र सन्नाटा छा गया । धीरे- धीरे स्वर्णसेन ने सम्पूर्ण घटना कह सुनाई । वह कहने लगे – “ ज्योंही हिंस्र सिंह गर्जन करके देवी अम्बपाली के ऊपर झपटा मैंने बाण सन्धान किया , परन्तु शोक , सिंह के धक्के से विचलित होकर मेरा अश्व बेबस होकर भाग निकला। मैंने देवी अम्बपाली को सिंह की भारी देह के साथ गिरते देखा है । हाय , मित्रो , अब मैं जनपद में मुंह दिखाने योग्य नहीं रह गया । " __ महाअट्टवी -रक्षक सूर्यमल्ल ने तत्काल पुकारकर दीपशलाकाएं जलाने और अपना अश्व लाने की आज्ञा दी । उन्होंने घटनास्थल पूछताछ कर बाणों से भरा तूणीर अपने कन्धे पर डाल और नग्न खड्ग हाथ में लेकर गहन वन में प्रवेश किया । पचासों प्यादे मशालें ले लेकर उनके आगे-पीछे चले । अनेक सामन्तपुत्र अश्वों पर सवार हो हाथों में नग्न खड्ग , शक्ति , धनुष - बाण लिए साथ हो लिए । परन्तु सम्पूर्ण रात्रि अनुसंधान करने पर भी वे देवी अम्बपाली का शरीर न पा सके, उन्होंने देवी के अश्व का मृत शरीर देखा । सिंह ने अपनी थाप से उसकी दो पसलियां उखाड़ ली थीं , परन्तु देवी का कहीं पता न था । वन का कोना - कोना छान डाला गया । सिंह का शरीर भी वहां न था । सभी ने यही समझ लिया कि सिंह अम्बपाली के शरीर को किसी
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