पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३३८

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अम्बपाली अवाक् रहकर मृत अश्व को देखने लगीं। फिर उन्होंने कहा - “ धन्यवाद मित्र , तुमने प्राणरक्षा कर ली है। परन्तु अब मैं मधुवन तक कैसे पहुंचूं भला ? सूर्य तो अस्त हो रहा है । ” ___ “ असम्भव है । एक मुहूर्त में अन्धकार घाटी में फैल जाएगा। दुर्भाग्य से तुम्हारा अश्व मर गया है और इस समय अश्व मिलना सम्भव नहीं है, तथा मधुवन यहां से दस कोस पर है, जा नहीं सकते मित्र। पर चिन्ता न करो, आओ, आज रात मेरी कुटिया में विश्राम करो मेरे साथ। ” ___ " तुम्हारे साथ ! आज रात ! असम्भव। " अम्बपाली ने सूखते कण्ठ से कहा और व्याकुल दृष्टि से युवक की ओर देखा । युवक ने और निकट आकर कहा- “ असम्भव क्यों मित्र। परन्तु निस्सन्देह तुम बड़े सुकुमार हो , कुटिया तुम्हारे योग्य नहीं , पर कामचलाऊ कुछ आहार और शयन की व्यवस्था हो जाएगी । यहां पर तो अकेले वन में रात व्यतीत करना तुम्हारे - जैसे सुकुमार किशोर के लिए उपयुक्त नहीं, निरापद भी नहीं है। " अम्बपाली ने कुछ सोचकर कहा - “मित्र , तुम क्या यहीं कहीं निकट रहते हो ? " " कुछ दिन से , उस सामने की टेकरी पर, उस कुटिया को देख रहे हो न ? ” " देख रहा हूं , पर तुम इस विजन वन में करते क्या हो ? युवक ने हंसकर कहा - “चित्र बनाता हूं । यहां का सूर्यास्त उन पर्वतों की उपत्यकाओं में ऐसा मनोरम है कि मैं मोहित हो गया हूं। " ___ " तो तुम चित्रकार हो मित्र ? " देख नहीं रहे हो , यह रंग की कूर्चिका और यह चित्रपट ! " " हं , और यह बर्ला ? यह अमोघ हस्तलाघव ? यह अभय पौरुष ? यह सब भी चित्रकला में काम आने की वस्तुएं हैं ? " युवक फिर हंस पड़ा। उसने कहा - “ मित्र , केवल कण्ठ -स्वर ही नहीं , बात कहने का और प्रशंसा करने का ढंग भी तुम्हारा स्त्रैण है, कुपित मत होना । इस हिंस्र अगम वन में एकाकी बैठकर चित्र बनाना , बिना इन सब साधनों के तो बन सकता नहीं , परन्तु बातों ही - बातों में सूर्य अस्त हो जाएगा तो तुम्हें कुटी तक पहुंचने में कठिनाई होगी । आओ चलें मित्र , क्या मैं तुम्हें हाथ का सहारा दूं? कहीं चोट तो नहीं आई है ? " । " नहीं- नहीं, धन्यवाद ! मैं चल सकने योग्य हूं , तुम आगे- आगे चलो मित्र ! ” और कुछ न कहकर अपनी रंग की तूलिका, कूर्च और चित्रपट हाथ में ले तथा बर्खा कन्धे पर डाल आड़ी-टेढ़ी पार्वत्य पगडण्डियों पर वह तरुण निर्भय लम्बे - लम्बे डग भरता चल खड़ा हआ और उसके पीछे अछताती -पछताती देवी अम्बपाली पुरुष- वेश के असह्य भार को ढोती हुईं । कुटी तक पहुंचते - पहुंचते सूर्यास्त हो गया । अम्बपाली को इससे बड़ा ढाढ़स हुआ । उनकी कृत्रिम पुरुष - वेश की त्रुटियां उस धूमिल प्रकाश में प्रकट नहीं हुईं , परन्तु इस नितान्त एकान्त निर्जन वन में एकाकी अपरिचित युवक के साथ रात काटना एक ऐसी कठिन समस्या थी जिसने देवी अम्बपाली को बहुत चल -विचलित कर दिया । कुटी पर पहुंचकर युवक ने देवी को प्रांगण में एक शिला दिखाकर कहा - “ इस