पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हुए । अभी द्वार बन्द थे। युवक ने आघात किया , प्रश्न हुआ " कौन है यह ? ” “चित्रभू, मित्र ! " “ठीक है ठहरो , खोलता हूं। " भारी सूचिका-यन्त्र के घूमने का शब्द हुआ और मन्द चीत्कार करके नगर - द्वार खुल गया । युवक ने अश्व के निकट जा अम्बपाली से मृदु कण्ठ से कहा “विदा प्रिये! ” "विदा प्रियतम ! " दोनों ही के स्वर कम्पित थे, वीणा और चित्र देवी को देकर यवक तीव्र गति से लौटकर वन के अन्धकार में विलीन हो गया और अम्बपाली धीरे - धीरे अपने आवास की ओर चली ।