पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३७२

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" तो आर्य क्या ऐसी आज्ञा देते हैं कि भविष्य में वज्ज़ियों का गण - शासन आर्य की राजनीति का अनुगमन करें ? " “ यदि यह ब्राह्मण उसके लिए हितकर होगा तो उसे ऐसा ही करना चाहिए। " __ " तो आर्य, यह गण-नियम के विपरीत है । यह साम्राज्य -विधान में सुकर है गण शासन में नहीं। गण - शासन सन्निपात के छन्द के आधार पर ही शासित हो सकता है । " " तो वज्जीसंघ आश्रित ब्राह्मण को आश्रय नहीं दे सकता है? " अब गणपति सुनन्द ने कहा “ आर्य, आप भलीभांति जानते हैं कि हमारा यह संघशासित तन्त्र सर्वसम्मति से चलता है, इसलिए इस सम्बन्ध में सोच-विचारकर जैसा उचित होगा , आर्य से परामर्श करके निर्णय कर लिया जाएगा । तब तक आर्य वज्जी -गणसंघ के प्रतिष्ठित अतिथि के रूप में रहकर संघ की प्रतिष्ठा - वृद्धि करें । " " तो गणपति राजन्य , ऐसा ही हो ! " आर्य वर्षकार ने हाथ ऊंचा करके कहा - “ तब तक मैं दक्षिण -ब्राह्मण- कुण्डग्राम सन्निवेश में आयुष्मान् सोमिल श्रोत्रिय का अन्तेवासी होकर ठहरता हूं । " विदेश - सचिव ने कहा - “जिसमें आर्य प्रसन्न हों ! तब तक आर्य की सेवा के लिए सहस्र स्वर्ण प्रतिदिन और यथेष्ट दास -दासी संघ की ओर से नियुक्त किए जाते हैं ! " वर्षकार ने मौन हो स्वीकार किया और संथागार त्यागा ।