112 . चाण्डाल मुनि का कोप हरिकेशीबल के वहां चले जाने पर भी वह तथाकथित राजकन्या वहां से नहीं गई । बहुत प्रकार से ब्राह्मणों को डराती - धमकाती रही। उसने कहा - “ हे ब्राह्मणो, तुमने अच्छा नहीं किया जो चाण्डाल मुनि को भिक्षा के काल में भिक्षा नहीं दी , उसे अपशब्द कहे , पीटा , उसे विरत किया । अब भी समय है, तुम उसके चरणों में पड़कर प्राण-भिक्षा मांग लो , नहीं तो मन्द कान्तार का यक्ष आज आप लोगों को जीवित नहीं छोड़ेगा। " बहुत से ब्राह्मण डर गए। बहुत संदिग्ध भाव से उस रूपसी बाला की बात सुनते रहे । कुछ ही देर में वे सब फिर कहने लगे - “ वाह, यह सब माया यहां नहीं चलेगी । हम ब्राह्मण वेदपाठी क्या उस काणे चाण्डाल के पैर छुएंगे! " सुन्दरी क्रुद्ध होती हुई चली गई । बहुत जन रूपसी के रूप की और कुछ उसकी अद्भुत वार्ता की आलोचना करते रहे। भोजन की वेला हुई और ब्राह्मण पंक्ति में बैठे ; ब्राह्मण- भोजन प्रारम्भ हुआ । भोजन के बाद स्वर्णवस्त्र उन्हें बांटे गए । परन्तु यह क्या आश्चर्य - चमत्कार हुआ , देखते - ही - देखते सभी ब्राह्मण उन्मत्तों की - सी चेष्टा करने लगे । वे हंसने -नाचने और अट्टहास करने लगे , अपने भूषण- वस्त्र उतार - उतारकर नंगे हो , बीभत्स और अश्लील चेष्टाएं करने लगे । बहुत लोग रक्त -वमन कर मूर्छित होने लगे। बहुत जन कटे काष्ठ के समान भूमि पर गिरकर पटापट मरने लगे । सोमिल ने भयभीत होकर आर्य वर्षकार से कहा- “ आर्य, यह सब क्या हो गया । " “ठीक नहीं हुआ सोमिल , चाण्डाल मुनि का कोप ब्राह्मणों पर हुआ। सम्भवत : यक्ष ने कुपित होकर ब्राह्मणों को मार डाला है। " ___ “ तो आर्य, अब क्या करना चाहिए। " “सोमिल , सब ब्राह्मणों को लेकर तुम नन्दन साहु के घर पर जाकर जितेन्द्रिय मुनि की स्तुति करके उसे प्रसन्न करो, इसी में कल्याण देखता हूं। " तब सोमिल बहुत - से ब्राह्मणों को संग ले नन्दन साहु के घर पहुंचा जहां वह कुत्सित चाण्डाल मुनि उच्चासन पर बैठा आनन्द से विविध पक्वान्न और मिष्टान्न खा रहा था । उसे देख , हाथ जोड़, सोमिल को आगे कर सब ब्राह्मणों ने कहा __ " हे भदन्त , हमें क्षमा करो , हम मूढ़ और अज्ञानी बालक के समान हैं । हम सब मिलकर आपकी चरण - वन्दना करते हैं । हे महाभाग , हम आपका पूजन करते हैं । आप हम सब ब्राह्मणों के पूज्य हैं । यह हम विविध प्रकार के व्यंजन , अन्न और पाक आपके लिए लाए हैं । इन्हें ग्रहण कर हमें कृतार्थ कीजिए । हे भदन्त ! हे महाभाग! हम सब ब्राह्मण आपकी शरणागत हैं । " चाण्डाल मुनि ने सुनकर कहा - “ हे घमण्डी ब्राह्मणो! यदि सत्य ही तुम्हें अनुताप हुआ है, तो जाओ, मन्दकान्तार जा , साणकोष्ठक चैत्य में शूलपाणि यक्ष की अभ्यर्थना- पूजन
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