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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३८७

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कौटिल्य से ये दोनों महाराज इस युद्ध में सर्वथा उदासीन ही रहेंगे । परन्तु हमें इसी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। महाराज उदयन से हमारी मित्रता के सूत्र और भी दृढ़ रहने चाहिए और इसके लिए हमें भन्तेगण, देवी अम्बपाली का अनुरोध प्राप्त करना होगा । देवी अम्बपाली ही का ऐसा प्रभाव महाराज उदयन पर है कि वे आंखें बन्द करके यौगन्धरायण के परामर्श की अवहेलना कर सकते हैं । ____ " भन्तेगण, अब मैं आपका ध्यान सुदूर राज्यों की ओर आकर्षित करना चाहता हूं , दक्षिण के अस्सकराज अरुण और गान्धार के महागणपति पुक्कणति । आप जानते हैं कि गान्धारपति पुक्कणति ने मगध- सम्राट् बिम्बसार को पठौनी भेजी थी । वे चाहते थे , कि पशुपुरी के शासानुशास को बिम्बसार सहायता दे। उनकी कठिनाइयां भी बड़ी पेचीली एवं दु: खप्रद हैं । उनका छोटा - सा गण पार्शवों का अब देर तक सामना नहीं कर सकता । पार्शव शासानुशास दारयोश ने पश्चिम गान्धार को अभी- अभी अपने साम्राज्य में मिला लिया है । वह अब सम्पूर्ण तक्षशिला और गान्धार के जनपद को आक्रान्त किया चाहता है। वास्तव में पशुपति दारयोश पश्चिम का बिम्बसार है । इसी से सहायता की इच्छा से गांधार के गणपति ने मगध - सम्राट् बिम्बसार को पठौनी भेजी थी । परन्तु मगध - सम्राट् के लिए अपनी ही उलझनें थोड़ी नहीं थीं । गान्धार का मगध पर कुछ ऋण भी है। मगध के अनेक मागध तरुण तक्षशिला के सर्वोत्कृष्ट स्नातक हैं । उन्होंने गान्धार राज को बहुत - कुछ आश्वासन वहां से आती बार दिया था , परन्तु मित्र सिंह ने भी उन्हीं के साथ तक्षशिला छोड़ा था और उन्होंने गान्धारपति को समझा दिया था , कि मगध- सम्राट् बिम्बसार पूर्व का दारयोश है । ऐसे साम्राज्य लोलुपों से आशा मत कीजिए। वज्जियों का अष्टकुल पूर्वी गांधारतन्त्र है और वह आपका मित्र है । इसलिए वैशाली गांधार के अपने ऋण को उतारेगा । ” । कुछ देर चुप रहकर जयराज फिर बोले - “ इसलिए मित्रो , हमने मित्र सिंह के परामर्श से गांधारपति को जो सम्भव हुआ , सहायता भेजी और आपको अभी मित्र काप्यक बताएंगे , कि जिस काल मगध - सम्राट् चम्पा और श्रावस्ती में व्यस्त थे - वैशाली के तरुणों ने सुदूर सिन्धुनद के तीर पर अपने खड्ग की धार से वज्जियों के अष्टकुल का कैसा मनोरम इतिहास लिखा था । “ परन्तु मैं अभी कुछ और भी बातें कहूंगा; भन्तेगण सुनें ! - अस्सक का राजा अरुण कलिंग गणपति सत्तभू पर आक्रमण करना चाहता है । कलिंग- गणपति ने वज्जियों के अष्टकुलों की सहायता मांगी है और पूर्व समुद्र में अपनी स्थिति ठीक रखने के विचार से हमने उसे स्वीकार कर लिया है तथा कलिंग राज्य से हमारी सन्तोषप्रद सन्धि हो गई है । रहा अस्सक , सो कभी वैशाली के तरुणों के खड्ग से उसका भी निर्णय हो जाएगा । अब काम्बोजों के बर्बरों का ही वर्णन रह गया है । वे थोड़े से स्वर्ण और उत्तम शस्त्र पाकर ही अपना रक्तदान हमें दे सकते हैं । इस प्रकार भन्तेगण, हमने सोलह महाजनपदों में अपनी स्थिति यथासम्भव ठीक कर ली है। " । __ जयराज महासन्धिवैग्राहिक यह कहकर बैठ गए। अब गांधार काप्यक ने खड़े होकर कहा - “ भन्तेगण सुनें , अष्टमहाकुल के वज्जियों ने जो कुछ सिन्धुनद पर अपनी कीर्ति विस्तार की है, उसी का बखान करने मैं यहां आया हूं , गान्धारगणपति की ओर से साधुवाद और कृतज्ञता का सन्देश लेकर ।