अनेक नट, विट, वेश्याएं , कुटनियां , विदूषक तथा सती और तीक्ष्ण सभ्य नागरिकों के वेश में शिल्पी दूत , वणिक , सार्थवाह , सेट्ठि बनकर वैशाली में फैल गए हैं । विविध प्रकार के धूर्त चर चारों ओर भर गए हैं और यह ब्राह्मण कुण्डग्राम के ब्राह्मण - सन्निवेश में एक टूटे छप्पर के नीचे बैठ उनके द्वारा मन्त्रयुद्ध का संचालन कर रहा है। " ___ गणपति सुनन्द ने कहा - " आयुष्मान् के पास इन सब बातों के सम्बन्ध में क्या - क्या प्रमाण है ? " _ _ “ क्या , भन्तेगणपति , आपने कुण्डग्राम के ब्राह्मण- सन्निवेश में अभी जो घटना हुई, उसे नहीं सुना है? ” " क्या आयुष्मान् उस चाण्डाल मुनि और यक्ष कन्या की बात कह रहा है ? " " वही बात है भन्ते ! मैं कहता हूं , यह इस कुटिल ब्राह्मण का कोरा मन्त्र - युद्ध है । इसमें वैशाली जनपद के सौ से अधिक व्यक्तियों की मृत्यु हो गई और अब सम्पूर्ण वैशाली भयभीत हो उस काणे कपटमुनि के चरणों में गिर-गिरकर अपनी सुख- दु: ख भावना , आकांक्षा तथा गोपनीय बातें भी बता रही है । क्या आप यह नहीं सोच सकते, कि ये सब छिद्र और जन - जन की जीवनगाथा उस कुटिल ब्राह्मण के कान में पहुंचकर वैशाली के विनाश का साधन बन रही है? " “ परन्तु आयुष्मान् इसका क्या प्रमाण है, कि वह भदन्त कोई भाकुटिक वंचक है, त्यागी समर्थ ब्रह्मचारी नहीं? " " भन्ते , वह जो कुछ है उसे हमने जान लिया है । " " तो कौन है वह ? " “ यह जयराज कहेंगे, इन्होंने वैशाली से अनुसंधान- सूत्र ग्रहण किया है। " " तो आयुष्मान् जयराज कहें ! " " भन्ते , वह काणा राजगृह का प्रसिद्ध नापित धूर्त प्रभंजन है । वैशाली के बहत जनों ने राजगृह में उससे बाल मुंडवाए हैं । " - जयराज ने कहा । “ क्या कहा ? राजगृह का नापित! ” । " हां भन्ते , उसका नाम प्रभंजन है और वह महाधूर्त है । " “ और वह यक्षिणी? " " वह राजगृह की प्रसिद्ध वेश्या मागधिका है। " “ किन्तु ब्राह्मण- उपनिवेश के ब्राह्मणों के उन्मत्त होकर मरने का कारण क्या है ? " “पूर्व-नियोजित योजना; नन्दन साहु ने विष - मिश्रित खाद्य उन्हें दिया है। वह दुष्ट इसी कुटिल ब्राह्मण का चर है और उसकी सम्पूर्ण योजनाओं का माध्यम वाहक है। " “ यह तो बड़े आश्चर्य की बात है! " __ “ यही नहीं भन्ते , आपने क्या विदिशा की वेश्या भद्रनन्दिनी का नाम नहीं सुना , जिसके हाथ में आज वैशाली के प्राण हैं ? " “ वह कौन है ? " “ मागध विषकन्या कुण्डनी। उसमें ऐसी सामर्थ्य है भन्ते, कि जिस पुरुष का वह चुम्बन करेगी , उसकी तुरन्त मृत्यु हो जाएगी । चम्पा की विजय का श्रेय इसी विषकन्या को है, इसी ने चम्पा के महाराज दधिवाहन के प्राण लिए हैं हन्ते! "
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