किसी ने भी यह नहीं सोचा कि इस घटना से वह छाया भी किसी भांति सम्बन्धित है । परन्तु सहसखियों से सेट्टिपुत्रवधू ने इस भयानक छाया का शयनकक्ष में आना वर्णित किया। सहसखियां सहम गईं । उन्होंने कहा - " तब यह स्वप्न नहीं , सत्य है, वह छायामूर्ति हमारे सामने ही शयन - कक्ष में गई थी , ” परन्तु फिर उसका क्या हुआ ? वह कहां गई ? इसका कोई उत्तर न दे सका। वधू ने लजाते हुए कहा कि वह उसे देखते ही मूर्छित हो गई थी और रात भर वह मूर्छित ही भूमि पर पड़ी रही । तब सब स्त्रियां तथा सेट्टिनी भी चिन्ता से व्याकुल हो गईं । प्रासाद में सभी कोई मूर्छित हो गए थे और सभी रात्रि भर माया - मूर्च्छित रहे यह तो अद्भुत बात है । इसी समय सेट्टि कृतपुण्य ने भीतर आकर पत्नी से एकान्त में कहा - “ कह नहीं सकता क्या बात है, पर पुत्र में बड़ा अन्तर पाता हूं । क्या उसने रात बहुत मद्य पी थी ? ” सेट्टिनी ने शयन - कक्ष का जो विवरण वधू से सुना वह सेट्टि को सुना दिया । सुनकर सेट्ठि बहुत भयभीत हुआ । उसने कहा - “ आर्य वर्षकार को सूचना देनी होगी, मैं अभी नन्दन साहु को बुलाता हूं। "
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