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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४१०

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को गुरु- भार परमाणु के रूप में व्यवस्थित किया जा सकता है? ” गान्धार छात्र कपिश ने पूछा। ___ “ रश्मिक्षेपण द्वारा। पदार्थों और अणु - परमाणुओं के संगठन -विघटन का प्रकृति साधन परमाणु में विद्युत - सत्त्व है, तथा उस संगठन को स्थायित्व प्राप्त होता है रश्मिपुञ्ज से । जब परमाणु का विस्फोट किया जाएगा , तो विद्युतसत्त्व और रश्मिपुंज - क्षेपण करना होगा। उसके बाद जब फिर से परमाणु संगठन करना होगा तो विद्युत - आवेश और रश्मिपुञ्ज का विकास होगा। " ___ “ यह किस प्रकार भगवन् ? ” " इस प्रकार कि प्रत्येक तत्त्व का प्रत्येक परमाणु एक छोटी - सी सूर्यमाला है। तुम जानते हो भद्र कि पृथ्वी आदि सम्पूर्ण ग्रह अपने विशिष्ट वृत्तों में सूर्य की परिक्रमा करते हैं । सूर्य - रूप भी स्थिर नहीं है । इसी प्रकार समस्त विद्युतसत्त्व रश्मिपुञ्ज की परिक्रमा करते रहते हैं । इससे रश्मिपुञ्ज और विद्युत -तत्त्व परमाणुओं का अत्यल्प स्थान व्याप्त कर पाते हैं । उस व्याप्त स्थान की अपेक्षा परमाणु का बहुत - सा अन्तराकाश ठोस से ठोस परमाणु में शून्य रहता है। इसी से तो हम कहते हैं - “ अणोरणीयान् महतो महीयान् । ” ___ " भगवान्, हम क्या शून्य को ही आकाश समझें ? शून्य तो नहीं है पर तत्त्व नहीं नहीं है; आकाश यदि तत्त्व है तो वह नहीं नहीं। है है। फिर भगवन् , वही आकाश परमाणु में भी व्याप्त व्याख्यात हुआ है । सो यदि वह शून्य है तो वह आकाश - तत्त्व नहीं है । ” – एक मागध छात्र ने शंका की । _ “ नहीं भद्र , आकाश शून्य का नाम नहीं है । आकाश तत्त्व एक अतिसूक्ष्म तरल पदार्थ है । यह तरल पदार्थ भूमण्डल के बाहर भी व्याप्त है, भीतर भी है। ग्रहों, नक्षत्रों और उनके मध्यवर्ती आकाश से लेकर ठोस - से -ठोस पदार्थों के अणओं में , यहां तक कि परमाण में भी वह व्याप्त है । यह सब सचराचर विश्व उसी द्रव - सत्त्व के अथाह समुद्र में रह रहा है । उसी से विद्युत - सत्त्व में शक्ति , प्रकाश में आलोक -प्रवाह और भूतत्त्व में स्थिर आकर्षण स्थापित है । ” __ “ तो भगवन्, जड़ पदार्थ और शक्ति में सामञ्जस्य किस प्रकार है ? " -तिब्बत के एक छात्र ने पूछा । __ “ पदार्थों के पुत्र, दो ही तो स्वरूप हैं या तो जड़- स्वरूप या शक्ति -स्वरूप । जड़ पदार्थ वे हैं , जिनमें भार और विस्तार , ये दो गुण समवाय सम्बन्ध में रहते हैं । शक्ति में कार्यक्षमता है, पर वह जड़ पदार्थ के आश्रय से रहती है । प्रत्येक पदार्थ की तीन अवस्थाएं हो सकती हैं : घन , द्रव और वाष्प । ये तीनों अवस्था ताप - शक्ति के कारण हैं । घन का प्रधान गुण काठिन्य है, द्रव का गुण समतल होना और वाष्प का जितना स्थान उसे मिले , सबमें व्याप्त हो जाना । ये जड़ पदार्थ अविनाशी हैं । उनके केवल रूपों का परिवर्तन होता है। " “ शक्ति -स्वरूप पदार्थ क्या है भगवन् ? " ताम्रपर्णी के एक छात्र ने कहा। " बल , ताप, प्रकाश और विद्युत - सत्त्व ये चार प्रमुख शक्ति - पदार्थ हैं । पदार्थ के अणुओं की गतिज शक्ति को ताप कहते हैं । प्रकाश सीधी रेखा में गमन करता है, उस रेखा को रश्मि कहते हैं । विद्युत - सत्त्व और बल नियामक पदार्थ हैं । " " तो भगवन् ! जब हम विद्युतसत्त्व और रश्मिपुञ्ज - क्षेपण से नाग ‘परमाणु तोड़कर