मल्ल शाक्य सभी ने यह नियम बनाया है, कि राज्य की सारी व्यवस्था अपने हाथ में रखी है । इनके राज्यों में आर्यों को कोई अधिकार ही नहीं है । इससे ब्राह्मण , विश और सेट्ठि सभी जन उनसे उदासीन हैं । विग्रह छिड़ने पर गणों को , जहां युद्ध में उलझना पड़ेगा , वहां इनकी रक्षा का भार भी ढोना होगा और वे लोग युद्ध में कुछ भी सहायता अपने गण की नहीं करेंगे। " __ “ तो यह छिद्र साधारण नहीं आर्य सेनापति , इसी से हम विजयी होंगे। " " परन्तु सेना से नहीं, संस्कृति से । इसीलिए हमें उन्हीं के बीच या तो वैशाली में , नहीं तो फिर उनके निकट पाटलिपुत्र में राजधानी बनाकर रहना होगा । " _ “ तो ऐसा ही होगा सेनापति , परन्तु अभी हम दक्षिण समुद्र - तट नहीं छू सकते , यह मैं भी देख रहा हूं परन्तु मागधों को अवन्ति पर अभियान करना होगा , इधर चम्पा -विजय होने से पूर्वीय समुद्र - तट हमारा हो गया । यदि इसी के साथ हमारा कोसल का अभियान सफल होता , तो उत्तर गान्धार तक फिर कोई बाधा न थी । मेरे जीवन ही में मेरा स्वप्न पूर्ण हो जाता , परन्तु अब कदाचित् हमें दूसरी पीढ़ी तक प्रतीक्षा करनी होगी । विदूडभ दासीपुत्र कठिन हाथों से कोसल की व्यवस्था कर रहा है, यद्यपि वह प्रकट में आयुष्मान् सोमप्रभ से अति उपकृत है। ” “ सो तो है ही देव , परन्तु हम राजनीति में प्रथम ही से कोई कल्पना नहीं कर सकते , परिस्थितियां क्षण- क्षण पर बदलती रहती हैं । इसलिए अभी हमें अपना ध्यान केवल वैशाली पर ही केन्द्रित करना चाहिए , जहां अमात्य आत्मयज्ञ कर रहे हैं और सोम कूटयुद्ध । फिर हमारे सोनगंगा और बागमती - तट के नये - पुराने दुर्ग हैं , जो सब भांति सज्जित हैं । इसके अतिरिक्त हमारी समर्थ जल - सैन्य है, जिसके सम्बन्ध में देव को सब कुछ विदित कर दिया गया है । " __ " तो ऐसा ही हो , आर्यसेनापति , आपने किस प्रकार सैन्य -व्यवस्था की है ? " _ “ इस समय हमारे पास कुल एक अक्षौहिणी सैन्य सन्नद्ध है। इसे मैंने पांच भागों में विभक्त किया है। एक मौल बल मूलस्थान , अर्थात् राजधानी की रक्षा करने के लिए; इसका भार आचार्य शाम्बव्य पर है । इस सेना का कार्य केवल राजधानी की रक्षा ही नहीं , क्षय और व्यय की पूर्ति करना भी है । इस सेना में अधिक विश्वस्त अनुभवी और योग्य व्यक्तियों को आचार्य की अधीनता में रखा गया है, जिससे पीछे शत्रु भेद न डाल दे। अन्न , रसद, शस्त्रास्त्र और नये - नये भट निरन्तर मोर्चे पर भेजते रहने की सारी व्यवस्था यही सेना करेगी। आवश्यकता होने पर सम्मख -युद्ध भी कर सकेगी।... ___ “ दूसरी सेना भूतक बल है। इसमें वे ही योद्धा हैं जो केवल वेतन लेकर युद्ध करते हैं । शत्रु के पास भूतकबल बहुत कम है और अभी हमें भिन्न शक्तियों से प्राप्त सहायता मिलने में विलम्ब भी है, अत : यही सैन्य कठिन मोर्चों पर आगे बढ़कर कार्य करेगी । इसी सेना को शत्रु के यातायात - अवरोध पर भी लगाया जाएगा ।... “ तीसरी श्रेणीबल है, जो जनपद में अपना - अपना कार्य करनेवाले शस्त्रास्त्र प्रयोग में निपुण पुरुषों की तैयार की गई है। शत्रु के पास श्रेणीबल यथेष्ट है । शत्रु से मन्त्र -युद्ध भी होगा और प्रकाश -युद्ध भी । ऐसी अवस्था में श्रेणीबल से हमें बड़ी सहायता प्राप्त होगी। " " चौथा ‘मित्रबल है । मित्रबल हमारे पास बहुत है । सत्ताईस मित्र- राज्यों से हमें
पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४५४
दिखावट