पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

136 . दूसरी मोहन – मन्त्रणा महाबलाधिकृत सुमन के अधिकरण में मोहन - गृह में वज्जीगण की समर मन्त्रणा हुई । सन्धिवैग्राहिक जयराज ने अपना विवरण सुनाते हुए कहा - “यद्यपि यह सत्य है कि मगध- सम्राट के पास उत्तम सेनापति और अच्छे सैनिक नही हैं , तथा उसकी सेना में बहुत छिद्र हैं , फिर भी आर्य वर्षकार का तूष्णी युद्ध और आर्य चण्डभद्रिक की व्यूह - योजना अद्वितीय है। हम यदि तनिक भी असावधान हुए तो हमारा पतन निश्चित है और हमारे साथ उत्तरपूर्वीय भारत के सब गणराज्य नष्ट हो जाएंगे। यह स्पष्ट है कि मगध- सम्राट् की सम्पूर्ण शक्ति इन दोनों ब्राह्मणों के हाथ में है और यही मागध राज्यसत्ता को साम्राज्य के रूप में संगठित कर रहे हैं , जो आर्यों की पुरानी कुत्सित राजव्यवस्था है। आर्यों के साम्राज्य इसलिए सफल हुए , कि उनमें आर्यों के शीर्ष स्थानीय क्षत्रिय और ब्राह्मण एकीभूत हो गए थे और निरीह प्रजावर्गीय संकर जातियों का कोई आश्रय ही न था ; परन्तु अब वह बात नहीं है । शिशुनाग वंश आर्य नहीं है । वह अपने ही स्वर्गीय जनों पर सम्राट् होकर रह नहीं सकते । ये आर्य ब्राह्मण, जो उस मूर्ख राजा की आड़ में आर्यों के ढांचे पर साम्राज्य गांठ रहे हैं वह अन्तत: विफल होगा । परन्तु अभी वह यदि वैशाली को आक्रान्त करता है और उधर प्रद्योत का भी पतन हो जाता है, तो हमारी सम्पूर्ण गणभावना नष्ट हो जाएगी और सम्पूर्ण जनपद फिर आर्यों के दासत्व में फंस जाएगा अथवा साम्राज्यवाद के मद में अन्धे बिम्बसार जैसे जातिघातक ही उनके अधिपति बन बैठेंगे! " “ यह अत्यन्त भयानक बात होगी आयुष्मान्, सम्पूर्ण जनपद के मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए हमें लड़ना और जय पाना होगा । ” सेनाधिनायक सुमन ने कहा। “किन्तु सेनापति , यदि सत्य देखा जाए, तो हम गणराज्यों के विधाता भी तो ठीक-ठीक जनपद मानवीय अधिकारों का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे! हमने भी तो अपने गणराज्यों की राज्य-व्यवस्था में आर्यों का बहिष्कार कर रखा है ! ” सिंह ने गम्भीरतापूर्वक कहा । “ यह है, परन्तु इसके गम्भीर कारण हैं , तथा इस समय हमें केवल मूल विषय पर विचार करना है, आयुष्मान् ! अब हमें यह जान लेना चाहिए कि हमारे भय के दो मध्य बिन्दु हैं - एक ब्राह्मण वर्षकार और दूसरे आर्य चण्डभद्रिक। ” “ एक तीसरा भय और है। " " वह कौन ? " “ सेनापति सोमप्रभ । वह एक मागध तरुण है, जिसके स्थैर्य , रणापांडित्य और विलक्षण प्रतिभा पर तक्षशिला के आचार्य और छात्र दोनों ही स्पर्धा करते रहे हैं । सम्भवत : वह मागध ही तरुण मागध - सेना का संचालन करेगा। ” जयराज ने कहा। “ यह तरुण कौन है भद्र ? "