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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४६८

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करते और रात में देखी बातों के संस्मरण लिखते । संध्या होने पर फिर आगे चलते । वे तीसरे दिन बागमती संगमतट पर के दुर्ग में पहुंचे। भटों की तत्परता और सतर्कता पर सेनानियों ने सन्तोष किया । उन्हें आवश्यक आदेश दिए और तक्षशिला की नई रणचातुरी सिखाने के लिए उन्हें उल्काचेल आने को कहा। अभी महानदी के दुर्गों को देखना शेष था । एक दिन उल्काचेल में तरुण सेनानियों ने विश्राम किया तथा आवश्यक आदेश वैशाली और भिन्न -भिन्न केन्द्रों को भेजे । दूसरे दिन चन्द्रोदय के साथ ही काप्यक और सिंह ने मिही की ओर नाव छोड़ी । दिधिवारा के संगम से ऊपर धार तीव्र थी , इसलिए घूमकर नौका ले जानी पड़ी । मिही के पूर्वी तट पर हरी घास का मैदान था , जहां सहस्रों गायें चर रही थीं । बीच में आदमियों और पशुओं के लिए छोटी- छोटी कुटियां बनी थीं । वे लिच्छवी और अलिच्छवी दोनों थे । चार दिन में मिही के दुर्गों का निरीक्षण हुआ । उन्हें नायक शान्तनु और उसके आठ उपनायकों को सौंप दिया गया , जिससे वे नाविकों को नवीन कौशल सिखा सकें । यह करके दोनों मित्र फिर उल्काचेल चले आए। यहां से काप्यक तो कुछ नौ - सधार के लिए वैशाली चले गए और सिंह ने सेनानियों को नौ युद्ध के कुछ नवीन और गुप्त रहस्य सिखाए। आठ दिन में यह कार्य सम्पन्न हुआ । अब सिंह ने अपने सम्पूर्ण कार्य का विवरण महाबलाध्यक्ष सुमन के पास वैशाली लिख भेजा। बलाध्यक्ष पश्चिमी और पूर्वी सीमान्त पर नौ -युद्ध की नवीन पद्धति की परीक्षा की बात जानकर अति सन्तुष्ट हुए । ___ अब सिंह ने अपना ध्यान दूसरी ओर किया । जयराज को उन्होंने लिखा कि चरों की संख्या बढ़ा दी जाए और सोन - तट और गंगा - तट पर शत्रु जो नई कार्रवाई कर रहा है , इसकी क्षण- क्षण की सूचना हमें मिलती जाए। सिंह ने यत्नपूर्वक यह भी जान लिया कि राजगृह और उसके मार्ग की रक्षा का क्या प्रबन्ध किया गया है। जयराज ने अनेक चर परिव्राजक, निगंठ , आजीवक , भिक्षु आदि वेशों में ; कुछ व्यापारी और ज्योतिषी बनाकर शत्रु की ओर भेज दिये । उन्होंने बताया कि चण्डभद्रिक बड़ी द्रुत गति से राजधानी के दुर्गों की मरम्मत करा रहे हैं ; तथा गंगा - तट से वहां तक उन्होंने उचित स्थानों पर नाकेबन्दियां कर रखी हैं । नालन्द, अम्बालिष्टिका की दो योजन भूमि में उसकी तैयारियां और भी अधिक थीं । अभिप्राय स्पष्ट था कि चतुर चाणाक्ष चण्डभद्रिक को भय था कि लिच्छवि कहीं राजगृह तक न दौड़ जाएं । सिंह सेनापति उल्काचेल लौट आए । चर सिंह के पास क्षण -क्षण में सूचना ला रहे थे और मगधराज की सम्पूर्ण गतिविधि का पता उन्हें लग रहा था । वे सूचनाओं के साथ - साथ अपनी योजनाएं भी सेनापति और गणपति के पास भेज रहे थे।