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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४७७

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144. व्यस्त रात्रि वह रात और दूसरा दिन शान्ति से सिंह का व्यतीत हआ । दोनों ओर के सैनिक अपने - अपने मृत सैनिकों , घायलों , बन्दियों की व्यवस्था में रत रहे । सूर्यास्त के समय सिंह को सूचना मिली – पाटलिग्राम के गंगा- तट पर हाथियों की बड़ी भीड़ एकत्रित है। मगध सेना सम्भवतः आज ही रात में इस पार उतरना चाहती है । सिंह ने तुरन्त कर्तव्य स्थिर किया । एक भूर्जपत्र पर मिट्टी की मुहर लगा , मिही - संगम पर अवस्थित काप्यक के पास भेज दिया । दूसरा पत्र उसी प्रकार सेनापति और गणपति के पास भेज दिया ; जिसमें सूचना थी कि युद्ध आज रात ही को प्रारम्भ हो रहा है । गान्धार काप्यक ने आदेश पाते ही पाटिलग्राम के सामनेवाले घाट पर अपनी योजना ठीक की । कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि थी । गहरा अन्धकार छाया था । हिलते हुए गंगाजल में कांपते हुए तारे टिमटिमा रहे थे। उस ओर मगध - शिविर में दूर कहीं - कहीं आग जल रही थी । इधर के तट पर काप्यक ने धनुर्धारियों की एक सृदृढ़ पदाति - सेना को गंगा - तीर के गहन वन में छिपा दिया । उनमें से बहुत तो अपने धनुष -बाण ले वृक्षों चढ़ गए। बहुत - से तटवर्ती ऊंचे-ऊंचे ढूहों पर चढ़ गए। बहुत - से पेड़ों की आड़ में छिपकर चुपचाप बैठ गए। इनका नेतृत्व उपनायक प्रियवर्मन् कर रहा था । ___ भटों की दूसरी टुकड़ी बड़े- बड़े खड्ग और शूल लिए हुए गंगा- तट पर फैले हुए बालू के मैदान में घाट के नीचे की ओर मिही- संगम तक चुपचाप पृथ्वी पर लेट गई; और संकेत की प्रतीक्षा करने लगी । इनका नेतृत्व उपनायक पुष्पमित्र कर रहे थे। धनुष , शूल और खड्गधारी तीसरी सेना को रणतरियों में सजाकर काप्यक ने अपने नेतृत्व में ले लिया । प्रत्येक तरी में पचास योद्धा थे। रणतरी मर्कटह्रद से गंगा -तीर तक आड़ में अव्यवस्थित चुपचाप आक्रमण की प्रतीक्षा कर रही थीं । सब ओर सघन अन्धकार और नितान्त सन्नाटा छाया हुआ था । किसी जीवित प्राणी के अस्तित्व का यहां पता ही नहीं लगता था । अभी रात एक पहर गई थी । काप्यक ने धीवरों के दल के पास जाकर एक - एक को ध्यान से देखा । उनमें एक तरुण को संकेत से पास बुलाया । पास आने पर कह " तुम्हारा क्या नाम है मित्र ? " " शुक , भन्ते सेनापति। ” " तुममें कितना साहस है, मित्र ? " " बहुत है सेनापति ! " “ सच ? ” काप्यक ने हंसकर कहा । तरुण की धवल दन्तपंक्ति भी अंधकार में चमक उठी । काप्यक ने उसके उसी रात के जैसे गहन कन्धों को छूकर कहा “ शुक , एक गुरुतर कार्य कर सकोगे ? "