146. सांग्रामिक मागध सैन्य अत्यन्त क्षतिग्रस्त हो उस रात के अभियान से लौटी । सम्राट और सेनापति आर्य उदायि उसके साथ नहीं थे। यह अत्यन्त भयानक बात थी । वे दोनों शत्रु के बन्दी हुए या युद्ध में मारे गए, इसका कोई सूत्र नहीं प्राप्त हुआ । केवल एक सैनिक ने सेनापति उदायि को बन्दी होते देखा था । परन्तु सम्राट के सम्बन्ध में कोई भी कुछ नहीं बता सका। सोमप्रभ ने सुना तो हतबुद्धि हो गए। उन्होंने जल्दी- जल्दी एक लेख लिखकर आर्य भद्रिक के पास दक्षिण केन्द्र पर भेज दिया और स्वयं दौड़े हुए तटस्थ केन्द्र पर आ पहुंचे। सेना की दुर्दशा देखकर उनकी आंखों में आंसू आ गए। सब विवरण सुनकर उन्होंने तत्काल ही अपना कर्तव्य स्थिर किया । प्रथम उन्होंने यह कठोर आज्ञा प्रचारित की कि सम्राट् का लोप होने का समाचार स्कन्धावार में न फैलने पाए। सेनापति उदायि के बन्दी होने का समाचार भी गुप्त रखा गया । आहतों की जो व्यवस्था हो सकती थी , उन्होंने फुर्ती से कर डाली । इसी समय आर्य भद्रिक भी आ पहुंचे। सोम ने कहा - “ आर्य सेनापति, बड़े ही दुर्भाग्य की बात है! " " क्या सम्राट हत हुए ? " “ ऐसी कोई सूचना नहीं है। " “ और उदायि ? " “ उन्हें बन्दी होते देखा गया है। " “ सम्राट के साथ कौन था ? " " आर्य गोपाल थे, वे भी नहीं लौटे हैं । " " उन्हें जीवित या मृत किसी ने देखा ? " " नहीं। " “ यह संदिग्ध है भद्र , सम्राट के अन्वेषण के लिए अभी चर भेजने होंगे । " “ वह सब सम्भव व्यवस्था मैंने कर दी है, पर आपके सन्देह से मैं सहमत हूं । भन्ते सेनापति , कैसे सम्राट् और गोपाल दोनों एक बार ही लोप हो गए ? " “ किसी भी सैनिक ने उन्हें देखा ? " “किसी ने भी नहीं। " । " तो उन्होंने युद्ध में भाग नहीं लिया ? " इतना कहकर आर्य भद्रिक गहन चिन्ता में पड़ गए। सोमप्रभ महासेनापति का मुंह ताकने लगे । उन्होंने कहा - “ क्या कोई गूढ़ रहस्य है भन्ते सेनापति ? " " यह है तो अतिभयानक भद्र, नौसेना की कैसी हालत है ? " “ वह अब युद्ध करने योग्य नहीं रही, नौकाएं सब छिन्न -भिन्न हो चुकीं । नौकाओं पर किसी योजना से प्रहार हुआ है। "
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