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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४९०

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149 . कैंकर्य इसी समय रक्तप्लुत खड्ग हाथ में लिए हुए गोपाल भट्ट ने सोमप्रभ के निकट आकर कहा “ भन्ते सेनापति , सम्राट का एक आदेश है। " सम्राट् का समाचार सुनकर सोमप्रभ वेग से चिल्ला उठे – “ सम्राट् की जय! " उन्होंने कूदकर गोपाल भट्ट के निकट आकर कहा “ सम्राट् जीवित हैं ? " “ हैं भन्ते सेनापति ! " " कहां ? ” " देवी अम्बपाली के आवास में । " सोमप्रभ के हृदय की जैसे गति रुक गई। उसने थूक निगलकर सूखते कण्ठ से कहा “ क्या कहा? कहां ? ” " देवी अम्बपाली के आवास में , भन्ते सेनापति! " " क्या सम्राट बन्दी नहीं हुए ? " " नहीं भन्ते , वे स्वेच्छा से देवी अम्बपाली के आवास में गए हैं । " " आप कहते हैं आर्य, स्वेच्छा से ? " " हां भन्ते सेनापति ! " सोम ने दांतों से होंठ काटे , फिर स्थिर मुद्रा से कहा “ सम्राट का क्या सन्देश है भन्ते ? " “ सम्राट का आदेश है कि देवी अम्बपाली के आवास की रक्षा की जाए। आवास पर लिच्छवि सैन्य ने आक्रमण किया है। " “किसलिए आर्य ? " “ सम्राट को बन्दी करने के लिए । " सोमप्रभ ने अवज्ञा से मुस्कराकर कहा - “ इसी से भन्ते! " फिर उन्होंने उधर से मुंह फेर लिया । बगल से तूर्य लेकर एक ऊंचे स्थल पर चढ़कर वेग से तूर्य फूंका। तूर्य की वह ध्वनि दूर - दूर तक फैल गई, इसके बाद उन्होंने अपना श्वेत उष्णीष खड्ग की नोक में लगाकर हवा में ऊंचा किया । इसके बाद फिर तीन बार तूर्य फूंका। आश्चर्यजनक प्रभाव हुआ । मागध सैन्य में जो जहां था , वहीं स्तब्ध खड़ा रह गया । शत्रु -मित्र आश्चर्यचकित रह गए । युद्ध बन्द हो गया । सोमप्रभ ने तत्काल सैन्य को पीछे लौटने का आदेश दिया । कराहते हुए घायलों और जलते हुए हम्यों के बीच मागध सैन्य चुपचाप लौट चली । सबसे आगे अश्व पर सवार मागध सेनापति सोमप्रभ खड्ग की नोक पर अपने उष्णीष की धवल ध्वजा फहराता अवनत - वदन जा रहा था ।