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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४९७

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"मेरी आज्ञा क्यों नहीं ली गई? " " कुछ आवश्यकता नहीं समझी गई । " " युद्ध किस कारण बन्द किया गया ? " " इस कारण कि युद्ध का उद्देश्य दूषित था । " " कौन - सा उद्देश्य ? " “ एक स्त्रैण, कापुरुष, कर्तव्यच्युत सम्राट ने अपनी पदमर्यादा और दायित्व का उल्लंघन कर एक सार्वजनिक स्त्री को पट्टराजमहिषी बनाने के उद्देश्य से युद्ध छेड़ा था । " “ और तेरा क्या कर्तव्य था रे, भाकुटिक ? " “मैंने तक्षशिला के विश्वविश्रुत विद्या केंद्र में राजनीति और रणनीति की शिक्षा पाई है। मेरा यह निश्चित मत है कि साम्राज्य की रक्षा के लिए साम्राज्य की सेना का उपयोग होना चाहिए । सम्राट की अभिलाषा और भोग-लिप्सा की पूर्ति के लिए नहीं। " " क्या सम्राट की मर्यादा तुझे विदित है ? " “ यथावत् ! और साम्राज्य की निष्ठा भी ! " " वह क्या मुझसे भी अधिक है? " “निस्सन्देह! ” " तो मैं घोषणा करता हूं - देवी अम्बपाली को मैं पट्टराजमहिषी के पद पर अभिषिक्त करके राजगृह के राजमहालय में ले जाऊंगा। इसके लिए यदि एक - एक लिच्छवि के रक्त से भी वज्जी - भूमि को आरक्त करना होगा तो मैं करूंगा। वैशाली को भूमिसात् करना होगा तो मैं करूंगा। मैं अविलम्ब युद्ध प्रारम्भ करने की आज्ञा देता हूं। " “मैं अमान्य करता हूं। इस कार्य के लिए रक्त की एक बूंद भी नहीं गिराई जाएगी और देवी अम्बपाली मगध के राजमहालय में पट्टराजमहिषी के पद पर अभिषिक्त होकर नहीं जा सकतीं । " “ जाएं तो ? " " तो , या तो सम्राट नहीं या मैं नहीं। " सम्राट ने हंकार भरी और खड्ग ऊंचा किया । सोम ने कहा - “ भन्ते ! नायक, उपनायक , सेनापति सब सुनें यह कामुक, स्त्रैण और कर्तव्यच्युत सम्राट और साम्राज्य के एक कर्मनिष्ठ सेवक के बीच का युद्ध है। सब कोई तटस्थ होकर यह युद्ध देखें । ” सम्राट् ने कहा - “ यह एक जारज , अज्ञातकुलशील , कृतघ्न सेवक के अक्षम्य विद्रोह का दण्ड है रे, आ ! " दूसरे ही क्षण दोनों महान् योद्धा हिंसक युद्ध में रत हो गए। खड्ग परस्पर टकराकर घात - प्रतिघात करने लगे। क्षण- क्षण पर दोनों के प्राणनाश की आशंका होने लगी । दोनों ही घातक प्रहार कर रहे थे तथा दोनों ही अप्रतिम योद्धा थे। युद्ध का वेग बढ़ता ही गया । अवसर पाकर सम्राट ने एक भरपूर हाथ सोमप्रभ के सिर को ताककर चलाया । परन्तु सोम फुर्ती से घूम गए। इससे खड्ग उनके कन्धों को छूता हुआ हवा में घूम गया । इसी क्षण सोम ने महावेग से खड्ग का एक जानलेवा हाथ सम्राट पर मारा। सम्राट ने उसे उछलकर खड्ग पर लिया । आघात पड़ते ही खड्ग झन्न - से दो टूक होकर भूमि पर जा गिरा