पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/५०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अब सिंह सेनापति ने कहा " भन्ते राजप्रमुख गण, मैं इस बात पर विचार करता हूं कि मनुष्य - शरीर की भांति राजवंश का भी काल है, राजवंशों का तारुण्य अधिक भयानक होता है। वृद्धावस्था उतनी नहीं। तीन - चार ही पीढ़ियों में राजवंश का तारुण्य जाता रहता है। फिर उसका वार्धक्य आता है । तब कोई नया राजवंश तारुण्य लेकर आता है । भन्ते , शिशुनाग राजवंश का भी यह वार्धक्य है । यदि इसे हम समाप्त कर देते हैं तो इसका अभिप्राय यह है कि कोई तरुण राजवंश अपनी सम्पूर्ण सामर्थ्य लेकर हमारे सामने आएगा। भन्तेगण , हमें भेड़िये की मांद छोड़कर सिंह की मांद में नहीं धंसना चाहिए। फिर भी एक बात है भन्ते , मागध राज्य को परास्त करना और उसे उन्मूलन करना एक सहज बात नहीं है । फिर भी हम परास्त कर चुके । हमारी प्रतिष्ठा बच गई, परन्तु इसमें हमारी सम्पूर्ण सामर्थ्य व्यय हो गई है, इस युद्ध में दस दिनों में हमारे गण ने ग्यारह लाख प्राणों की आहुति दी है । धन , जन और सामर्थ्य के इस क्षय की पूर्ति हमारा गण आधी शताब्दी तक भी कर सकेगा या नहीं , यह नहीं कहा जा सकता।.... ___ " हमारी सेनाएं राजगृह के आधे दूर तक के राजमार्ग और गंगा - तट पर फैली हुई हैं । हमने मगध सेना का सम्पूर्ण आयोजन अधिकृत कर लिया है, परन्तु भन्तेगण, गंगा - तट से आगे मागधों के प्रबल और अजेय मोर्चे और सैनिक दुर्ग हैं । राजधानी राजगृह भी अत्यन्त सुरक्षित है । नालन्द अम्बालष्टिका की दो योजन की भूमि पर शत्रु की बहुत भारी सैनिक तैयारी अभी भी अक्षुण्ण है । इन सबको विजय करने के लिए हमें और ग्यारह लाख प्राणों की आहुति देनी होगी । क्या गण इसके लिए तैयार है? फिर और एक बात है! " “ वह क्या ? " _ " हमें राजगृह का दुर्गम दुर्ग भी जय करना होगा । बिना ऐसा किए मगध का पतन नहीं हो सकता । परन्तु भन्तेगण , आप भलीभांति जानते हैं , राजगृह का दुर्ग सम्पूर्ण जम्बूद्वीप में दुर्भेद्य है। उसके सैनिक महत्त्व को मैं जानता हूं। यह उसका मानचित्र उपस्थित है । यदि गंगा - तट की राजगृह की भूमि जय करने में हमें महीनों लगेंगे तो राजगृह को जय करने में वर्षों लगेंगे। यह अभूतपूर्व नैसर्गिक दुर्ग वैभार , विपुल , पाण्व आदि दुर्गम पर्वत श्रृंखलाओं से आवेष्टित और सुरक्षित है , इन पहाड़ों के ऊपर बहुत मोटी शिलाओं के प्राकार , विशाल पत्थरों की चुनी हुई प्राचीर इस छोर से उस छोर तक मीलों दूर फैली हुई है। केवल दक्षिण ओर एक संकरी गली है, जिसमें होकर दुर्ग में जाया जा सकता है । इन प्राचीरों में सुरक्षित बैठकर एक - एक धनुर्धर सौ - सौ लिच्छवियों को अनायास ही मार सकता है। इस गिरि - दुर्ग में सुमागध सरोवर है , जिसके कारण दुर्ग घेरने पर भी वर्षों तक अन्न - जल की कमी बिम्बसार को नहीं रहेगी। फिर पांचों पर्वतों पर खिंची दैत्याकार प्राचीरों को भंग करने का कोई साधन हमारे पास नहीं है । " भन्ते , इस परिस्थिति में हम यदि आगे युद्ध में बढ़ते हैं तो हमारी अपार जनहानि होगी । इतने जन अब हमारे अष्टकुल में नहीं हैं । न हमारे छत्तीसों गणराज्यों में हैं । यदि तीन पीढ़ियों तक अष्टकुल -गणराज्य की प्रत्येक स्त्री बीस-बीस पुत्र उत्पन्न करे तो हो सकता है । सो भन्तेगण, यदि हमने राजगृह जय करने का साहस किया तो सफलता तो संदिग्ध है ही , अपार धन - जन की हानि भी निश्चित है। "