अतिगोपनीय यात्रा करनी होगी।"
"मैं प्रस्तुत हूं!"
"तो तुम इसी क्षण कुण्डनी को लेकर चम्पा को प्रस्थान करो। तुम्हारे साथ केवल पांच योद्धा रहेंगे। वे मैंने चुन दिए हैं। सभी जीवट के आदमी हैं, वे बाहर तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। किन्तु तुम्हारी यात्रा कोई जान न पाएगा, तथा तुम्हें कुण्डनी की रक्षा भी करनी होगी। उससे भी अधिक और एक वस्तु की—
"वह क्या आर्य?"
"यह", वर्षकार ने एक पत्र सोमप्रभ को देकर कहा—"इसे जल्द से जल्द सेनापति चण्डभद्रिक को पहुंचाना होगा। पत्र निरापद उनके हाथ में पहुंचना अत्यन्त आवश्यक है।"
"आर्य निश्चिन्त रहें!"
"परन्तु यह सहज नहीं है आयुष्मान्, राह में दस्युओं और असुरों के जनपद हैं। फिर तुम्हें मैं अधिक सैनिक भी नहीं ले जाने दे सकता।"
"वचन देता हूं, पत्र और कुण्डनी ठीक समय पर सेनापति के पास पहुंच जाएंगे।"
"कुण्डनी नहीं, केवल पत्र। कुण्डनी सेनापति के पास नहीं जाएगी। सेनापति को उसकी सूचना भी नहीं होनी चाहिए।"
"ऐसा ही होगा आर्य, किन्तु कुण्डनी को किसके सुपुर्द करना होगा?"
"यह तुम्हें चम्पा पहुंचने पर मालूम हो जाएगा।"
"जो आज्ञा आर्य!"
अमात्य ने दण्डधर को कुण्डनी को भेज देने का संकेत किया। कुण्डनी ने अमात्य के निकट आकर उनके चरणों में प्रणाम किया। अमात्य ने उसके मस्तक पर हाथ धरकर कहा—
"कुण्डनी!"
कुण्डनी ने विह्वल नेत्रों से अमात्य की ओर देखा।
अमात्य ने कहा—"सम्राट् के लिए!"
कुण्डनी उसी भांति स्थिर रही—अमात्य ने फिर कहा—"साम्राज्य के लिए!"
कुण्डनी फिर भी स्तब्ध रही। अमात्य ने कहा—"मागध जनपद के लिए!"
कुण्डनी अब भी अचल रही। अमात्य ने कहा—"हाथ दो कुण्डनी!"
कुण्डनी ने अपना दक्षिण हाथ अमात्य के हाथ में दे दिया।
अमात्य ने कहा—"कांप क्यों रही हो कुण्डनी?"
कुण्डनी बोली नहीं। अमात्य ने उसके मस्तक पर हाथ धरकर कहा—"सोम की रक्षा करना, सोम तुम्हारी रक्षा करेगा, जाओ!"
कुण्डनी ने एक शब्द भी बिना कहे भूमि में गिरकर प्रणाम किया।
अमात्य ने एक बहुमूल्य रत्नजटित खड्ग तरुण को देकर कहा—"सोम, इसे धारण करो। आज से तुम मगध महामात्य की अंगरक्षिणी सेना के अधिनायक हुए।"
सोम ने झुककर खड्ग दोनों हाथों में लेकर अमात्य का अभिवादन किया और दोनों व्यक्ति पीठ फेरकर चल दिए।
अमात्य के मुख पर एक स्याही की रेखा फैल गई। उन्हें प्राचीन स्मृतियां व्यथित करने लगीं और वे अधीर भाव से कक्ष में टहलने लगे।