पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/९१

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"परन्तु क्या भन्ते?"

"आयुष्मान्, तेरा यह वेश तो बिल्कुल ही पराया है?"

"भन्ते सेनापति, आचार्य बहुलाश्व ने जब मुझे तक्षशिला से विदा किया था, तब दो बहुमूल्य वस्तुएं मुझे दी थीं—एक अपनी इकलौती पुत्री रोहिणी और दूसरी यह बात कि—पुत्र, विश्व के मानवों में परायेपन का भाव मत रखना।"

इस पर रम्भा ने हंसकर नटखटपने से कहा—"तो सिंह कुमार, इन दोनों बहुमूल्य वस्तुओं में से एक रोहिणी को तो मैं पसन्द करती हूं।"

"और दूसरी को मैं। आयुष्मान्, तुम रम्भा से सुलझो, मैं तब तक अन्य अतिथियों को देखूं।" वह हंसते हुए आगे बढ़ गए।

सेनापति चन्द्रभद्र ने श्रोत्रिय आश्वलायन को दूर से देखा, तो हर्ष से चिल्लाते हुए उनके पास दौड़े आए और कहा—"स्वागत मित्र आश्वलायन, खूब आए! कभी-कभी तो मिला करो। कहो, कैसे रहे मित्र!"

"परन्तु सेनापति, गृहसूत्रों के रचने से समय मिले तब तो। मैं चाहता हूं कि गृहस्थों की व्यवस्था स्थापित हो जाए और उनमें षोडश संस्कारों का प्रचलन हो जाए।"

"यह तो बहुत अच्छा है, परन्तु क्या रात-दिन सूत्र ही रचते हो, कभी अवकाश ही नहीं पाते?"

"पाता क्यों नहीं सेनापति, पर अवकाश के समय ब्राह्मणी जो भुजंगिनी–सी लिपटती है! अरे! क्या कहूं सेनापति, ज्यों-ज्यों वह बूढ़ी होती जाती है, उसका चाव-शृंगार बढ़ता ही जाता है। देखोगे...तो...."

"समझ गया, समझ गया! परन्तु आज कैसे ब्राह्मणी से अवकाश मिल गया, मित्र?"

"अरे उस पापिष्ठा अम्बपाली को देखने का कौतूहल खींच लाया। उसके आवास में तो हीरे-मोती बिखेरने वाले ही जा सकते हैं, मेरे जैसे दरिद्र ब्राह्मण नहीं।"

"अच्छा, यह बात है? मित्र आश्वलायन, किन्तु क्या ब्राह्मणी से यह बात कह आए हो?"

"अरे नहीं, नहीं। कहता तो क्या यहां आ पाता? जानते हैं सेनापति, डायन इतनी ईर्षा करती है, इतना सन्देह करती है कि क्या कहूं! तनिक किसी दासी ने हंसकर देखा कि बिना उसे बेचे चैन नहीं लेगी। उस दिन एक चम्पकवर्णा तरुणी दासी को चालीस निष्क पर बेच डाला। वह कभी-कभी इस बूढ़े ब्राह्मण की चरणसेवा कर दिया करती थी। सेनापति, कृत्या है कृत्या!"

"तो मित्र आश्वलायन, उस पापिष्ठा अम्बपाली को देखने के लिए इतनी जोखिम क्यों उठा रहे हो?"

"यों ही सेनापति, विश्व में पाप-पुण्य दोनों का ही स्पर्श करना चाहिए।"

"तो मित्र, खूब मज़े में स्पर्श-आलिंगन करो, यहां ब्राह्मणी की बाधा नहीं है।"

ब्राह्मण खूब ज़ोर से हंस पड़ा। इससे उसके कुत्सित-गन्दे दांत बाहर दीख पड़े। उन्होंने कहा—"आपका कल्याण हो सेनापति, पर वह पापिष्ठा यहां आएगी तो?"

"अवश्य आएगी मित्र, आयुष्मान् सिंह और उससे अधिक उसकी गान्धारी पत्नी