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२८. सुरैया -दाहरी नहीं चौहरी भाई फलू !"।
- भाई वीरू ! मै तो तेरी तारीफ करूँगा, तू तो मालूम होता है, हर बातके लिये हर वक्त तैयार रहता है, इम-तो एक दुनियासे जब दूसरी दुनियामे आते हैं, तो कितनी देर तो स्मृति ठीक करनेमें लग जाती है। क्यों टोंडू भाई ! ठीक कह रहा हूँ न ?
“हाँ, मुझे भी तअज्जुब होता है फज़लू। यह बीरू क्या करता है। इसका कितना बड़ा दिमाग़ है- “बीरबल ही को न खुब लोग हिन्दुस्तान एक एक खेतॉपर लगी चलाने वाला मानते हैं ?" “लैकन टोडरमलने भी तो बीरू भाई ! हर जगह लग्गी नहीं घुमाई । । | बीरबल–“घुमाई हो या न घुमाई हो, दुनिया यही जानती है। और इस दिमाग़की दाद तो हमारा जल्लू भी देगा।" | अकबर--*ज़रूर, और यह उन किस्सोंमे नही है, जो बादशाह जलालुद्दीन अकबरके भैस बदलकर गाँव-गाँवमें घूमने के बारेमे मशहूर हैं। बीरबल--यह अच्छी याद दिलाई जलुआ भाईने । और मैं भी इसके साथ मारा जा रहा हूँ। बीरबल और अकबर के नाम से कोई भी क़िस्सा गढ़कर कह डालना आम बात हो गई है। मैंने ऐसे बहुतसे क़िस्से जमा किये हैं। एक किस्सैके लिए एक अशर्फी मुकरर कर रखी है। अकबर--कहीं, ऐसा न हो कि तुम्हारी अशरफी के लिये किस्से दिमाग़से सीधे तुम्हारे पास पहुँचते हों।” | वीरवल-"हो सकता है, किन्तु, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, तब भी तो यह पता लगेगा कि क्या क्या खुराफाते हुम दोनोके नामसे रची जा रही हैं।" १६.