पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३५०

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सदर ३४६ भयभीत हो बर्लिनकी ओर देखने लगीं । यह तो हुआ बाहरके भयके बारेमें, लेकिन इससे भी बड़ा भय हुआ पैरिसके मजदूरोंके उस राज्यपेरिस-कम्यून—से जो तारीख़ दो अप्रैलसे डेढ़ महीनेसे कुछ ही ज्यादा (२ अप्रैल-२१ मई सन् १८७१ ई० ) रही और जिसने बतला दिया कि सामन्त और बनिये ही नहीं, बल्कि मज़दूर भी राज्य कर सकते हैं ।” आप समझते हैं, इन सबके साथ ही भारतको राजनीतिक घटनाएँ सम्बद्ध हैं ?" । | राजनीतिक घटनाएँ नहीं, बल्कि हमारे शासक अॅग्रज भारतके बारे में जो भी नीति अख्तियार करते हैं, उसकी तहमें उनका भारी हाथ होता है। यूरोपमें जर्मनी जैसी दुर्जेय शक्तिके पैदा होते ही, फ्रान्स इंग्लैण्ड का प्रतिद्वन्द्वी नहीं रहा । अब उसे ख़तरा हो गया जर्मनीसे ।। मृत पेरिस-कम्यून और सन् १८७१ में आस्ट्रीया जोड़ सारी जर्मन रियासतोंके एक जीवित जर्मन राष्ट्रने हमारे पूँजीपति शासकोंकी नींद हरामकर दी होती--इसे कहनेकी ब्ररूरत नहीं । साथ ही इसी वक्त और परिवर्तन होता है । सन् १८७० ई० में अँग्र ज्ञ व्यापारीसे पूँजीपति बने और कच्चे मालकी ख़रीदसे लेकर, उसे तैयार करके बेचने तक हर अवस्थामें ना उठानेके सस्ते पूँजीवादको उन्होंने अपनाया । व्यापारवादमें सिर्फ कारीगरोंके मालको इधरसे उधर ले जाकर बेचने भरका नफा है, किन्तु पूँजीवादमे नफा पग-पग पर है । कईंको खरीदने में नफा, बिनौले निकालने और गाँठ बाँधनेमैं नफा, रेल पर ढोनेमे नफा, जहाज़ पर ले जानेमे नफा ( किरायेमें ) मैचेस्टरकी मिलमे सूत कताई और कपड़ा बुनाईमेनफा, फिर जहाज्ञसे कपड़े के लौटानेमे जहाज़कम्पनीका नफा, रेलका नफा---इन सत्र नफॉकी तुलना कीजिए कारीगरके हायके बने मालको बेचनेवाले व्यापारीकै नफेरौ ।”

  • व्यापारवादसे पूँजीवादको नशा अधिक है, यह इष्ट है।"
    • और सन् १८७१ ई० में वसईसे जब विजयी जर्मनीने पुसियाके. राजा विलियम प्रथमको सारी जर्मनीका कैसर ( सम्राट् ) घोषित किया,,