पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३७०

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म सुमेर ३६६ सुनकर सेठोंको विश्वास है कि जापानी शासनमें कारखानेके मालिक वही रहेंगे। यह छोड़ क्तलाइए, उनके दिलमें और कौन-से उच्च आदर्शके निमित्त त्याग-भाव छल-छला आया है ? । देशकी अर्जित सम्पत्तिकी वह रक्षा करना चाहते हैं।" ओझा ,जी ! मत जले पर नमक छिड़किए। सेठको देशको सम्पत्तिका नहीं अपनी सम्पत्तिको ख्याल है। उनके लिए देश जायै चूल्हा-भाड़ में । वह चाहते हैं, ज्यादासे ज्यादा नफा कमाना । मञ्जदूरों की चार पैसा मज़दूरी बढानेको जगह जो लोग इतालियोंको मोटरसे कुचलवा देते हैं, उनके लिए देशको सम्पत्तिके अर्बन-रक्षणकी बात न कीजिए।"

  • यदि उनके बारेमे यह मान भी लिया जाये, तो भी गाधी जीकी ईमानदारी पर तो आपको सदेह नहीं होना चाहिए।"

"मैं ईमानको आदमीकै कामसे, उसके वचनसे तौलता हूँ। मैं -गाधी जीको दुध पीनेवाला बच्चा नहीं मानता। एंड्रजके फंडके लिये उन्हें पाँच लाखकी जरूरत थी । पाच ही दिनमै बंबईके सेठोंने गाधी जीके चरणोंमें सात लाख अर्पित कर दिये। सेठोका जितना बड़ा काम यह कर रहे हैं, उसके लिए इंग्लैंड-अमेरिकाके सेठ सात करोड़की थैलो पेश कर सकते थे, यह तो अत्यत सस्ता सौदा रहा।" इसका मतलब है रिश्वत ।। ' 'सेठ भगवान्को भी कुछ चढ़ाते हैं, तो सिर्फ उसी ख्यालले । उनके द्वार पर 'लाभ शुभ' लिखा रहता हैं । “तो चखें-कर्भेको आप शोषणका शत्रु नहीं मानते है उलटा मैं उन्हें शोषणका ज्ञबर्दस्त पोषक मानता हैं।" "तब तो मिलको भी आप शोषणका शत्रु समझते होंगे ! "सुनिए भी तो मैं क्यों शोषक मानता हूँ, दुनिया जिस तरह पत्थरके हथियारोंको छोड़कर बहुत आगे चली आई , उसी तरह बढ़े-कचॅसे भी बहुत आगे चली आई है, मैने पटना म्युझियममें इज़ार