पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/४४

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अमृताश्व ४१ '-बकरियों को बह पालता है, स्त्रीको उसने पशु-पक्षी नहीं, गृह-पत्नी बनाया है।" “और लड़कियोंको लूटने लायक बनाया है। वहीं तो लड़कियाँ नहीं लूटी जाती होंगी अमृत है। “एक जनके लड़के-लड़की सदा उसी जनमें रहते हैं, न बाहर देना, न बाहरसे लेना।" कैसा रिवाज है ? * वह यहाँ नहीं चल सकता । * इसलिये लड़कियाँ लूटी जाती रहेंगी १५ 'हाँ, तो मधुरा ! क्या कहती है ? क्सि बारे में १ । मेरे प्रेमके बारेमे ।। "मैं तेरे वशमै हूँ अमृत 1 “किन्तु मैं लूटकर नहीं ले जाना चाहता । "क्या, मुझे युद्ध करने देगा ? *जहाँ तक मेरा बस होगा।" और शिकार करने १० जहाँ तक मेरा बेस होगा । बस ११ “क्योंकि मुझे महापितरकी आज्ञा तो माननी ही पड़ेगी। अपनी औरसे मधुरा ! मैं तुझे स्वतंत्र समझेगा ।”

  • प्रेम करने न करनेके लिये भी । "प्रेम हमारा संबंध स्थापित कर रहा है। अच्छा, उसके लिये भी "तो अमृत ! मैं तेरा प्रेम स्वीकार करती हूँ। *"तो हम कुरुओंमें चले या पक्थमैं १ “जहाँ तेरी मर्जी ।। अमृतने घोडेको लौटाया और वह मधुराके बताये रास्तेसे पक्थोके