(६७) एक किनारे ले गए। धीरे-धीरे सभा मंडप खाली हो गया । राजकर्मचारी अब तक ठहरे थे। प्रथा यह थी कि सभा विसर्जित होने पर मंत्रणा सभा बैठती थी जिसमें केवल प्रधान-प्रधान राजकर्मचारी रहते थे। हृषीकेश शर्मा ने पुकार कर कहा “आज महाराजाधिराज़ अस्वस्थ हैं इससे मंत्रणा सभा नहीं हो सकती।" सम्राट ने यह सुन कर कहा "आज तो मंत्रणा सभा बहुत ही आवश्यक है। संध्या हो जाने के पीछे समुद्र गृह में मंत्रणा सभा का अधिवेशन होगा। बहुत ही आवश्यक कार्य है। जो कर्मचारी यहाँ उपस्थित नहीं हैं उनके पास भी दूत भेजे जायँ।" रामगुप्त यशोधवलदेव को अपने घर ले जाने की चेष्टा कर रहे थे । यशोधवलदेव उनका आतिथ्य स्वीकार करके सम्राट के पास विदा माँगने गए। सम्राट ने कहा "यशोधवल ! मेरी भी कुछ इच्छा है। तुम मेरे साथ आओ, आज तुम साम्राज्य के अतिथि हो।" सम्राट, यशोधवलदेव और शशांक सभा स्थल से उठे। u
- समुद्र गृह = प्रासाद के एक भाग का नाम ।