पृष्ठ:शशांक.djvu/१२९

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{{rh|(१०६ )||}} , गई है। काठ के भारी-भारी पटरों के हट जाने से बीच की मिट्टी गिर- गिर कर खाई को भर रही है। दीवार के ऊपर पेड़ पौधों का जंगल लग रहा है। नगर वाले दिन को भी उधर जाने से डरते हैं।

जिस दिन सवेरे यशोधवल ने सम्राट के पास जाकर राज-कार्य चलाने की इच्छा प्रकट की थी, उसी दिन सूर्योदय के पहले प्राचीन प्रासाद के प्राकार के ऊपर तीन भिक्खु बैठे बातचीत कर रहे थे। दूर पर एक और भिक्खु एक पेड़ के नीचे अँधेरे में खड़ा था। पेड़-पौधों के जंगल में बहुत से भिक्खु इधर-उधर छिपे हुए पहरे का काम करते थे। जो तीन भिक्खु बातचीत कर रहे थे, उनमें से दो को तो हमारे पाठक जानते हैं; तीसरा व्यक्ति कपोतिक संघाराम का महास्थविरं बुद्धघोष था। बंधुगुप्त, शक्रसेन और बुद्धघोष उत्तरापथ के बौद्धसंघ के प्रधान नेता थे। बुद्धघोष कह रहे थे "भगवान् बुद्ध का नाम लेकर अब तक हम लेग बौद्धसंघ की उन्नति का प्रयत्न निर्विघ्न करते आए हैं। पर अब इतने दिनों पर फिर बाधा का रंग ढंग दिखाई देता है। यशोधवलदेव रोहिताश्वगढ़ छोड़कर पाटलिपुत्र आ रहे हैं, यह संवाद उनके आने के पहले ही हम लोगों को मिल जाना चाहिए था। करुष* देश के संघ- स्थविर कान में तेल डाले बैठे हैं। वे संघ के इतने बड़े और प्रबल शत्रु का कुछ भी पता नहीं रखते"। शक्र०-महास्थविर ? इसमें करुष देश के संघस्थविरों का उतना दोष नहीं है। पुत्र के मरने पर यशोधवल पागल हो गए थे और पागलों की तरह ही दुर्ग में अपने दिन काटते थे। अस्सी वर्ष के ऊपर का बुड्ढ़ा फिर जवान होगा, इस बात का किसी को भरोसा न था, इसी से वे लोग निश्चिंत हो बैठे थे।

  • करुषदेश = वर्तमान आरा या शहाबाद का ज़िला ।