( १३१ ) . 9 - क्यों न बुलाए जायें ?" वृद्ध सम्राट ने झुका हुआ सिर उठाकर कहा "यशोधवलदेव ! गणना का फल कभी झूठ नहीं हो सकता । तुम शशांक को अभी से साम्राज्य के कार्य में न फँसाओ।" यशो०-~-महाराजाधिराज ! युवराज को राजकार्य में दक्ष करने को छोड़ साम्राज्य की रक्षा का और कोई उपाय नहीं है। वृद्ध महामंत्री हृषीकेश शर्मा, पुराने धर्माध्यक्ष नारायण शर्मा, युद्धक्षेत्र में दीर्घजीवन बितानेवाले महाबलाध्यक्ष और मैं महाराजाधिराज के चरणों में यह बात कई बार निवेदन कर चुका । इस समय साम्राज्य की जो दुर्दशा हो रही है, वह महाराज से छिपी नहीं है । होराशास्त्र की बातों को लेकर राज्य चलाना असंभव है। यदि कुमार के हाथों से साम्राग्य का नाश ही विधाता को इष्ट होगा तो उसे कौन रोक सकता है ? विधि का लिखा तो मिट नहीं सकता। किंतु यही सोचकर हाथ पर हाथ रखे बैठे रहना, अपनी रक्षा का कुछ उपाय न करना कहाँ तक ठीक है ? कहीं कुमार का राष्ट्रनीति न जानना ही आपके पीछे साम्राज्य के ध्वंस का प्रधान कारण न हो जाय। सम्राट चुपचाप बैठे रहे। उन्हें निरुत्तर देख हृषीकेश शर्मा धीरे- धीरे बोले “महाराजाधिराज ! महानायक का प्रस्ताव बहुत उचित जान पड़ता है। हम सब लोग अब बुड्ढे हुए। हम लोगों का समय अब हो गया। अब ऐसा कुछ करना चाहिए जिसमें महाराज के पीछे युवराज को राजनीति के घोर चक्र में पड़कर असहाय अवस्था में इधर उधर भटकना न पड़े। यदि विधाता की यही इच्छा होगी कि युवराज के हाथ से यह प्राचीन साम्राज्य नष्ट हो तो कोई कहाँ तक बचा सकेगा ? किंतु विधाता की यही इच्छा है, पहले से ऐसा मान बैठना बुद्धिमानी का काम नहीं है।' सम्राट फिर भी कुछ न बोले। यह देख नारायण शर्मा ने कहा "महाराजाधिराज !" उनका कंठस्वर कान
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