पृष्ठ:शशांक.djvu/१७८

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यशोधवल फिर लौटकर रोहिताश्वगढ़ नहीं गए । वे तब से अपनी पौत्री को लेकर बराबर प्रासाद ही में रहते हैं । सम्राट महासेनगुप्त अब बहुत वृद्ध हो गए हैं, किंतु अब तक वे दिन में एक बार संध्या के समय सभामंडप में आ जाते हैं। सभा का सारा कार्य युवराज शशांक और महानायक यशोधवलदेव करते हैं। शशांक के संगी साथी अब ऊँचे ऊँचे पदों पर हैं । नरसिंहदत्त इस समय प्रधान सेनानायकों में हैं । माधवा नौसेना के अध्यक्ष हुए हैं और अनंतवा युवराज के शरीररक्षी हैं । युवराज किशोरावस्था पारकर अब युवावस्था को प्राप्त हुए हैं । कैशोर की चपलता अब उनमें नहीं है, अब युवराज धीर, शांत और चिंताशील हैं । यशोधवलदेव के तीनों प्रस्ताव तो कार्य्यरूप में परिणत हो चुके- दुर्ग सुदृढ़ हो गए, सेना सुशिक्षित हो गई और राजस्वसंग्रह की व्यवस्था हो गई। अब बंगदेश पर अधिकार करने का आयोजन हो रहा है। किस प्रकार उक्त तीनों बातों की व्यवस्था हुई इसे बहुत दिनों तक राजकर्मचारी भी न समझ सके । वृद्ध महानायक ने अपने और युवराज के हस्ताक्षर से एक सूचनापत्र राज्य के सब धनिकों, श्रेष्ठियों और भूस्वामियों के पास भेजकर उन्हें साम्राज्य की सहायता के लिए उत्सा. हित किया । साम्राज्य की रक्षा से अपनी रक्षा समझ सब ने प्रसन्न चित्त से साम्राज्य को ऋण दिया। इस प्रकार बहुत सा धन एकत्र हो गया । उसी धन से उक्त तीन प्रस्ताव कार्यरूप में परिणत हुए। एक बड़ी सेना खड़ी करके यशोधवल ने चरणाद्रिगढ़ पर फिर से अधिकार किया । मंडला और गौड़ पर साम्राज्य की सेना ने अधिकार स्थापित किया। सरयू नदी से लेकर करतोया नदी तक के विस्तृत प्रदेश के सामंत. सिर झुकाकर राज-कर भेजने लगे । सब सीमाएँ सुरक्षित हो गई थीं। इससे तीन ही वर्ष में यशोधवलदेव ने सौरा ऋण चुका दिया। पर बड़े-बड़े नदों से घिरा हुआ वंगदेश अब तक अधीन नहीं हुआ था। बौद्धा- ,