पृष्ठ:शशांक.djvu/१९१

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प्रतीहार-युवराज से निवेदन करो कि स्वयं महाराजाधिराज और महानायक यशोधवलदेव उन्हें कई बार पूछ चुके ।

युवराज अब तक चिंता में ही डूबे हुए थे। वे सोच रहे थे कि यदि कहीं युद्ध में मैं मारा गया तो वृद्ध पिता की क्या दशा होगी? साम्राज्य की क्या दशा होगी ? जिन्होंने मेरे ही भरोसे पर इस बुढ़ापे में राजकार्य का जंजाल अपने ऊपर छोढ़ा है, उन पितृतुल्य यशोषवल-देव का क्या होगा ? और भी लोग हैं-माता हैं, वे भी मुझे देखकर ही जीती हैं। चित्रा है-

वसुमित्र धीरे से आकर कुमार के सामने खड़ा हो गया, पर उन्हें चिंता में देख कोई बात न कह सका । अनंतवर्मा ने पूछा “क्यों सेठ ! प्रतीहार ने क्या कहा है ?"

वसुमित्र-कहा है कि सम्राट और महानायक कुमार को पूछ रहे हैं।

कुमार मानो सोते से जाग पड़े । उन्होंने पूछा "क्या वसुमित्र--प्रभो! गंगाद्वार के प्रतीहार ने कहा है कि स्वयं महा- राजाधिराज और महानायक यशोधवल देव कुमार को कई बार पूछ चुके।

अब नाव गंगाद्वार के घाट की सीढ़ियों पर आ लगी। कुमार नाव पर से उतरे। नरसिंहदत्त बोले "चित्रा रोते रोते सो गई है”। पीछे से माधववा बोल उठे "लतिका भी सो गई है। इसी बीच में लल कहने लगा "कुमार ! महाराजाधिराज बुला रहे हैं। आप चले, हम लोग पीछे से आते हैं"। कुमार धीरे धीरे प्रासाद के भीतर गए ।