पृष्ठ:शशांक.djvu/२०६

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(१८८) सिर उठाकर देखा । खिड़की पर एक मनुष्य खड़ा देख उन्होंने फूल फिर खिड़की की ओर फेंका। इसके पीछे एक भिक्खु को बुलाकर वे बोले “पाठ में कुछ व्याघात पड़ गया, तुम बैठकर पाठ करो।" वह भिक्खु आसन पर आ जमा और महास्थविर मंदिर के बाहर निकले। महास्थविर को उठते देख वह व्यक्ति खिड़की के पास से हट गया और भीड़ में जा मिला। महास्थविर को बाहर आते देख उपासक उपासिकाओं ने मार्ग छोड़ दिया । वे किसी ओर न देख धीरे धीरे चले। भीड़ में से निकल उस पुरुष ने महास्थविर को प्रणाम किया। वे आशीर्वाद देकर फिर चलने लगे। इसी बीच उस पुरुष ने उनके कान में न जाने क्या कहा । उन्होंने कहा "तितल्ले की कोठरी में चलो"। वह पुरुष फिर भीड़ में मिल गया । महास्थविर संघाराम के भीतर गए । संघाराम के तीसरे तले की एक कोठरी में महास्थविर बुद्धघोष आसन पर बैठे हैं । कोठरी का द्वार बंद है । भीतर घृत का एक दीपक जल रहा है। देखने से तो जान पड़ता है कि महास्थविर जप कर रहे हैं। पर सच पूछिये तो वे उत्सुक होकर उस पुरुष का आसरा देख रहे हैं । आधी घड़ी पीछे कोठरी का किवाड़ किसीने खटखटाया । महा- स्थविर ने उठकर किवाड़ खोले, वह पुरुष भीतर आया। महास्थविर ने सावधानी से किवाड़ फिर भिड़ाकर उससे पूछा “नयसेन ! इतनी रात को क्यों आए १ कोई नया समाचार है ?" नय-विशेष समाचार न होता तो इतनों रात को कष्ट न देता। अभी बहुत सी अश्वारोही सेना पश्चिम तोरण से होकर चरणाद्रि महा०-कितने अश्वारोही रहे होंगे ? नय०- मैं अच्छी तरह देख न सका, पर पाँच सहस्र से ऊपर जान पड़ते थे।