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पृष्ठ:शशांक.djvu/२१९

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(२०१ ) यशो०-महाराजाधिराज की जैसी आज्ञा हो । सम्राट-क्या कोई और दंड देने से न होगा? यशो -वह यदि जीता बचेगा तो आगे चलकर साम्राज्य का बहुत कुछ अनिष्ट करेगा। सम्राट-अभी न जाने कितनी नरहत्या करनी होगी। व्यर्थ किसी का प्राण लेने से क्या लाभ ? यशो-तो फिर महाराजाधिराज की क्या आज्ञा होती है ? सम्राट-उसे छोड़ देना ठीक न होगा ? यशो०-किसी प्रकार नहीं। सम्राट्-तो फिर कारागार में डाल दो। सम्राट् इतना कहकर चले गए! यशोधवलदेव फिर घर के भीतर जाना ही चाहते थे कि तरला खंभे की ओट से निकलकर आई और उसने प्रणाम किया। महानायक ने पूछा "तरला! क्या क्या कर आई ?" तरला ने हँसकर कहा “प्रभु के आशीर्वाद से सब कार्य सिद्ध कर आई"। -अच्छी बात है। सेठ की लड़की घर से निकलना चाहती है ? तरला-इसी क्षण । यशो० तब फिर विलंब किस बात का ? तरला-प्रभु की यदि आज्ञा हो तो आज रात को ही सेठ की कन्या को ले आऊँ। यशो -अच्छा, तो फिर तुम्हारे साथ एक तो वसुमित्र जायगा, और कौन कौन जायँगे ? तरला-बहुत से लोगों को ले जाने की क्या आवश्यकता है ? यशो०-६