(२२०) मंडलागढ़ की ओर यात्रा की । सम्राट् कह चुके थे कि वंगदेश का युद्ध समाप्त हो जाने पर नरसिंहदत्त को उनके पूर्व पुरुषों का अधिकार दे दिया जायगा। यूथिका को यशोधवलदेव ने महादेवी के पास अंतःपुर में भेज दिया या । उन्होंने स्थिर किया था कि वंगदेश से लौट आने पर उसका विवाह वसुमित्र के साथ होगा, तब तक सेठ की कन्या राज- भवन में ही रहेगी। तरला यशोधवलदेव के बहुत पीछे पड़ी थी कि युद्धयात्रा के पहले ही वसुमित्र और यूथिका का विवाह हो जाय पर उन्होंने एक न सुनी। उन्होंने कहा “नई व्याही स्त्री घर में छोड़ युद्धयात्रा करना योद्धा के लिए कठिन बात है। एक ओर युद्धयात्रा की तैयारी हो रही है दूसरी ओर व्याह की तैयारी करना ठीक नहीं है" । तरला चुप हो रही। कुछ दिन पीछे संवाद आया कि गिरिसकट पर अधिकार हो गया, पदातिक सेना ने पहाड़ियों और जंगलियों को मार भगाया । उस पहाड़ी प्रदेश में थोड़ी सी सेना रखकर नरसिंहदत्त ने गौड़ देश की ओर यात्रा की। इतना सुन यशोधवलदेव ने भी शुभ दिन देख कुमार शशांक को साथ ले पाटलिपुत्र से प्रस्थान किया । महाराजा- धिराज की आज्ञा से राजधानी अनेक प्रकार से सजाई गई। पूर्व तोरण से होकर दो सहस्र अश्वारोही सेना के साथ युवराज ने वंमदेश की यात्रा की। माधववर्मा और अनंतवा उनके पार्श्वचर होकर चले। वृद्ध सम्राट् ने तोरण तक आकर अपने वाल्यसहचर यशोधवल- देव के हाथ में पुत्र को सौंपा । उनकी बाई आँख फरक रही थी। यशोधवलदेव उन्हें ढाढ़स बँधाकर विदा हुए । युवराज ठीक समय पर मंडलादुर्ग पहुँच गए । पदातिक सेना लेकर नरसिंहदय गौड़ देश में जा निकले। वे मार्ग में मंडलादुर्ग को
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