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पृष्ठ:शशांक.djvu/३२

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(१२) पर नाती के वंशवालों का अधिकार होगा। तभी से वृद्ध सम्राट ने भाटों और चारणों को गुप्तवंश के लुप्त गौरव की कथा, चंद्रगुप्त और समुद्रगुप्त का चरित, कुमार के आगे कहने का निषेध कर दिया था । कुमार के चले जाने पर सम्राट फिर चिंता में पड़ गए। वे भट्ट की कोठरी से निकल इधर उधर टहलने लगे। सम्राट के कोठरी से निकलते ही वृद्ध भट्ट कटे पेड़ की तरह विस्तर पर जा पड़ा। तीसरा परिच्छेद पाटलिपुत्र के मार्ग पर दोपहर को गहरी वर्षा हो गई है। आकाश अभी स्वच्छ नहीं हुआ है । संध्या होते होते गरमी बढ़ चली । पाटलिपुत्र से कुछ दूर वाराणसी की ओर जाते हुए निर्जन पथ पर धीरे धीरे अंधकार छा रहा था । पर्वतों की चोटियों और पेड़ों के सिरों पर डूबते हुए सूर्य की रक्ताभ किरनें अब भी कहीं कहीं झलकती हुई दिखाई देती थीं किंतु पूर्व की ओर घने काले बादलों की घटा छाई हुई थी। चौड़े राजपथ पर वर्षा का जल नदी की तरह बह रहा। चार जीव धीरे धीरे उस पथ पर पाटलिपुत्र की ओर आ रहे थे। सब के आगे लंबी लाठी लिये एक बुड्ढा था, उसके पीछे बारह वर्ष की एक लड़की थी । सब के पीछे एक बुड्ढा गदहा था जिसकी पीट पर एक छोटा सा बालक बैठा था । वृद्ध चलते चलते बहुत थककर भी चुपचाप चला जाता था। पर लड़की रह रहकर विश्राम की इच्छा प्रगट करती जाती थी।