पृष्ठ:शशांक.djvu/३८६

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(३६७ ) तुम्हारा काम तो पूरा हो गया। अब बताओ कहाँ जाओगे और क्या करोगे-?" "कार्य तो हो चुका, महाराज ! अब मुझे और कुछ करना नहीं है। अब मृत्यु की खोज में बाहर निकलना है"। "भाई ! इसके लिए तुम्हें दूर न जाना होगा । तुम मेरे साथ रहो, मृत्यु का नित्य सामना होगा। "कहाँ चलना होगा, महाराज ?" "बस सीधे प्रतिष्ठानपुर"। शशांक अनंतवां के हाथ का सहारा लिए गढ़ के ऊपर चढ़ने लगे । सैनिक भी उनके पीछे पीछे चला । पंद्रहवाँ परिच्छेद सहाय्य प्रार्थना सम्राट.की आज्ञा से प्राचीन पाटलिपुत्र नगर निर्जन हो गया। साम्राज्य की राजधानी कर्णसुवर्ण नगर में स्थापित हुई । कर्णसुवर्ण नदी से घिरे हुए एक टीले पर बसा था। स्थान सुरक्षित स और उसके चारों ओर का दृश्य अत्यंत मनोरम था। उत्तर राढ़ में अब तक