पृष्ठ:शशांक.djvu/३९७

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( ३७८) बोले 'अब क्या करना चाहिए ? नगर तो शत्रुओं के हाथ में जा ही चुका, अब यही हो सकता है कि उनके बीच कूदकर वीर गति प्राप्त करें। रविगुप्त-इस समय ऐसा करना मैं नीतिविरुद्ध समझता हूँ। जब साम्राज्य में सेनानायकों का इस प्रकार अभाव हो रहा है तब यश की कामना से मृत्यु का आश्रय लेना मैं उचित नहीं समझता। साम्राज्य के भीतर कई स्थानों पर युद्ध ठना है। स्वयं सम्राट युद्ध कर रहे हैं। इस समय उनके सहायकों की संख्या में कमी करना मैं धर्म नहीं समझता। माधववर्मा f-आप वृद्ध हैं, जैसा उपदेश देंगे वैसा ही करूँगा। रविगुत-अब हमलोगों को सम्राट के पास, चलना चाहिए । एक महीने में मेघनद के तट पर अपने शिविर में वसुमित्र ने सुना कि भास्करवा ने कर्णसुवर्ण पर अधिकार कर लिया, परं पुररक्षकों में से कोई बदी नहीं हुआ। दूर के रोहिताश्व और प्रतिष्ठानदुर्ग में कर्णसुवर्ण के पतन का समाचार जा पहुँचा । शशांक समझे कि नरसिंहदत्त के समान माधववर्मा ने भी साम्राज्य की सेवा में अपना जीवन विसर्जित कर दिया। सम्राट प्रतिष्ठान छोड़ मगधं को लौट आए। वसुमित्र भी लौट कर गौड़देश में पहुँचे। PENIS