( १० ) का, महाराज कृष्णगुप्त, उनके पुत्र श्रीहर्षगुप्त, उनके पुत्र जीवितगुप्त (प्रथम ) और उनके पुत्र कुमारगुप्त (तृतीय) हुए जिन्होंने मौखरिराज ईशानवर्मा को पराजित किया । कुमारगुप्त के पुत्र श्रीदामोदरगुप्त भी मौखरी राजाओं से लड़ते रहे। दामोदरगुप्त के पुत्र महासेनगुप्त ने कामरूप के राजा सुस्थितवर्मा को पराजित किया। महासेनगुप्त के पुत्र माधवगुप्त हुए जो श्रीहर्षदेव के सहचर थे। इन्हीं माधवसेन के पुत्र आदित्यसेन हुए। उपर्युक्त राजाओं में कुमारगुप्त ( तृतीय ) के काल का पता ईशान- वर्मा के हड़हावाले शिलालेख में लग जाता है जिसके अनुसार ईशानवर्मा सन् ५५४ ई० में राज्य करते थे। माधवगुप्त के पूर्वजों के संबंध में यह ठीक ठीक नहीं निश्रित होता कि वे मगध में राज्य करते थे या मालवा में। वाण के हर्षचरित में मालवा के दो राजकुमारों, कुमारगुप्त और माधवगुप्त थानेश्वर के राज्यवर्द्धन और हर्षवर्धन का सहचर होना लिखा है- मालवराजपुत्रौ भ्रातरौ भुजाविव मे शरीरादव्यतिरिक्तौ कुमार- गुप्तमाधवगुप्तनामानावस्माभिर्भवतोरनुचरत्वार्थमिमी निर्दिष्टौ। ( हर्षचरित, ४थ उच्छ्वास) माधवगुप्त हर्षवर्द्धन के अत्यंत प्रिय सहचर थे। अपने बहनोई कान्यकुब्ज के राजा ग्रहवर्मा के मालवराज द्वारा और अपने बड़े भाई राज्यवर्द्धन के गौड़ाधिप द्वारा मारे जाने पर जब हर्षवर्द्धन अपनी बहिन राज्यश्री को ढूँढ़ते ढूँढ़ते 'विध्याटवी' में बौद्ध आचार्य दिवा- करमित्र के आश्रम पर गए थे तब वे अपना दहना हाथ माधवगुप्त के कंधे पर रखे हुए थे- अवलंब्य.. दक्षिणेन हस्तेन च माधवगुप्तमंसे ( अष्टम- उच्छ्वास)। माधवगुप्त के हर्ष के सहचर होने का उल्लेख अफसड़ के लेख में भी इस प्रकार है-श्रीहर्षदेवनिजसंङ्गमवाञ्छया च ।
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