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शिवशम्भु के चिट्ठे

इन लोगोंके विचारमें कलाम नहीं। पर समय कम है, काम बहुत होंगे। इसके सिवा कई राजा-महाराजा पहले दरबारहीमें खर्च से इतने दब चुके हैं कि श्रीमान् लार्ड कर्जनके बाद यदि दो वैसराय और आवें और पांच-पांचकी जगह सात-सात साल तक शासन करें, तब तक भी उनका सिर उठाना कठिन है। इससे दरबार या हाथियों के जुलूसकी फिर आशा रखना व्यर्थ है। पर सुना है कि अबके विद्या का उद्धार श्रीमान् जरूर करेंगे। उपकारका बदला देना महत् पुरुषों का काम है। विद्याने आपको धनी किया है, इससे आप विद्याको धनी किया चाहते हैं। इसीसे कंगालों से छीनकर आप धनियों को विद्या देना चाहते हैं। इससे विद्या का वह कष्ट मिट जावेगा, जो उसे कंगालको धनी बनाने में होता है। नींव पड़ चुकी है, नमूना कायम होने में देर नहीं। अब तक गरीब पढ़ते थे, इससे धनियोंकी निन्दा होती थी कि वह पढ़ते नहीं। अब गरीब न पढ़ सकेंगे, इससे धनी पढ़ें या न पढ़ें, उनकी निन्दा न होगी। इस तरह लार्ड कर्जन की कृपा उन्हें बेपढ़े भी शिक्षित कर देगी।

और कई काम हैं, कई कमीशनोंके कामका फैसिला करना है, कितनी ही मिशनोंकी कारवाईका नतीजा देखना है। काबुल है, काशमीर है। काबुल में रेल चल सकती है। काशमीरमें अंगरेजी बस्ती बस सकती है। चायके प्रचार की भांति मोटरगाड़ी के प्रचार की इस देशमें बहुत जरूरत है। बंगालदेश का पार्टीशन भी एक बहुत जरूरी काम है। सबसे जरूरी काम विक्टोरिया-मिमोरियल हाल है। सन् १८५८ ई॰ की घोषणाको अब भारतवासियों को अधिक स्मरण रखने की जरूरत न पड़ेगी। श्रीमान् स्मृतिमन्दिर बनवाकर स्वर्गीया महारानी विक्टोरिया का ऐसा स्मारक बनवा देंगे, जिसको देखते ही लोग जान जावेंगे कि महारानी वह थी, जिनका यह स्मारक है!

बहुत बातें हैं। सबको भारतवासी अपने छोटे दिमागोंमें नहीं ला सकते। कौन जानता है कि श्रीमान् लार्ड कर्जनके दिमाग में कैसे-कैसे आली खयाल भरे हुए हैं। आपने स्वयं फरमाया था कि बहुत बातों में हिन्दुस्थानी अंगरेजोंका मुकाबला नहीं कर सकते। फिर लार्ड कर्जन तो इंग्लैण्ड के रत्न हैं। उनके दिमागकी बराबरी करनेकी गुस्ताखी करने की यहां के लोगों