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पृष्ठ:शिवशम्भु के चिट्ठे.djvu/३२

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शिवशम्भु के चिट्ठे


बड़ा ही भेद हो गया है।

संसारमें अब अंगरेजी प्रताप अखण्ड है। भारतके राजा अब आपके हुक्मके बन्दे हैं। उनको लेकर चाहे जुलूस निकालिये, चाहे दरबार बनाकर सलाम कराइये, उन्हें चाहे विलायत भिजवाइये, चाहे कलकत्ते बुलवाइये, जो चाहे सो कीजिये, वह हाजिर हैं। आपके हुक्मकी तेजी तिब्बतके पहाड़ों की बरफको पिघलाती है। फारिसकी खाड़ीका जल सुखाती है, काबुलके पहाड़ोंको नर्म करती है। जल, स्थल वायु और आकाशमण्डलमें सर्वत्र आपकी विजय है। इस धराधाममें अब अंगरेजी प्रतापके आगे कोई उंगली उठानेवाला नहीं है। इस देशमें एक महाप्रतापी राजाके प्रतापका वर्णन इस प्रकार किया जाता था कि इन्द्र उसके यहां जल भरता था, पवन उसके यहां चक्की चलाता था, चांद-सूरज उसके यहाँ रोशनी करते थे इत्यादि। पर अंगरेजी प्रताप उससे भी बढ़ गया था। समुद्र अंगरेजी राज्यका मल्लाह है, पहाड़ोंकी उपत्यकाएं बैठनेके लिये कुर्सी-मूढ़े। बिजली कलें चलानेवाली दासी और हजारों मील खबर लेकर उड़नेवाली दूती। इत्यादि-इत्यादि।

आश्चर्य्य है माइ लार्ड! एक सौ सालमें अंगरेजी राज्य और अंगरेजी प्रतापकी तो इतनी उन्नति हो; पर उसी प्रतापी ब्रिटिश राज्य के अधीन रहकर भारत अपनी रही-सही हैसियत भी खो दे! इस अपार उन्नतिके समयमें आप जैसे शासकके जीमें भारतवासियोंको आगे बढ़ानेकी जगह पीछे धकेलनेकी इच्छा उत्पन्न हो! उनका हौसला बढ़ानेकी जगह उनकी हिम्मत तोड़नेमें आप अपनी बुद्धिका अपव्यन करें! जिस जातिसे पुरानी कोई जाति इश धराधामपर मौजूद नहीं, जो हजार सालसे अधिककी घोर पराधीनता सहकर भी लुप्त नहीं हुई, जीती है, जिसकी पुरानी सभ्यता और विद्याकी आलोचना करके विद्वान और बुद्धिमान लोग आज भी मुग्ध होते हैं, जिसने सदियों इस पृथ्वीपर अखण्ड शासन करके सभ्यता और मनुषत्वका प्रचार किया—वह जाति क्या पीछे हटाने और धूल में मिला देनेके योग्य है आप जैसे उच्च श्रेणीके विद्वानके जीमें यह बात कैसे समाई कि भारतवासी बहुत से काम करनेके योग्य नहीं और उनको आपके सजातीय ही कर सकते हैं? आप परीक्षा करके देखिये कि भारतवासी सचमुच उन ऊंचेसे ऊंचे कामों को कर सकते हैं या नहीं, जिनको आपके सजातीय कर सकते हैं? श्रममें, बुद्धि