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शिवशम्भुके चिट्ठे


है और उनके आगे रोना-गाना वृथा है। दुर्बलकी वह नहीं सुनते।

वंग-विच्छेद से हमारे महाप्रभु सरदस्त राजा-प्रजामें यही भाव उत्पन्न करा चले हैं। किन्तु हाय! इस समय इसपर महाप्रभुके देशमें कोई ध्यान देनेवाला तक नहीं है! महाप्रभु तो ध्यान देने के योग्य ही कहां।

('भारतमित्र',२१ अक्तुबर सन् १९०४)



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