सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८७
शिवसिंहसरोज

________________

शिवसिंहसरोज

८७ १७८. चैन कवि
यापु को वाहन बैल वली [] हू को वाहन सिंहहि पेखी कै। मूषक वाहन है सत एक सु दूजो मयूर के पच्छ विसेखि कै॥ भूपन हैं कवि चैन फनिंद के वैर परे सब ते संव लेखि के। तीनिहु लोक के ईस गिरीस सुजोगी.भये घर की गतिदेखि कै॥१॥
१७६. चैनसिंह खत्री लखनऊ। उपनाम हरचरण।
(भारतदीपिका ग्रन्थ)
स्वेत रथ स्वेत वस्त्र स्वेत ध्वजा स्वेत छत्र स्वेत ही तुरंग लखि भूप लागे []। ज्ञान में गनेस अस्त्र सत्र में महेससम पौरुप में राम कोऊ कहि न सकत तन॥कहै हरचर्न मारतंड के समान तेज जाकी हाँक सुने मुख फेरि लेत अरिजन। रोदा के वजत सूरवीर संगराम तजै गंगा के तनै की सुनि सिंह की सी गरजनं ॥१॥
(श्रृंगारसारावली ग्रन्थ)
ससी उर वसी सी गरेे पहिरेे उरवसी सी पिया उर वसी सी देखे दुख सरकि जात। कंचुकी कसीसी बहु उपमा लसी सी रूप सुन्दर धसी सी परजंक पै थरकि जात॥ कहै हरचर्न रही चमकि नीर्स प्यारी जामें लगी मीसी हिये सौतिन दरकिजात। भुज में कसी सी. सिन्धु गंग ज्यों धसी सी जाके सीसी करिवे में सुध सीसी सी ढरकि जात॥२॥
१८०. चिन्तामणि त्रिपाठी, टेकमापुर अंतर्वेद के (१)
(छंदविचारपिंगल)
दोहा-सूरजवंसी भोसला, लसत साहं मकरंद।

महाराज दिगपाल जिमि, भाल समुदं सुभ चंद ।। १ ॥ मुकुतमाल 'उत माँग इतहि सो मंग. गंग गनि ।

  1. वनिना
  2. लरजन