पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शिवसिंड्रोज २७१ n S ५८१. मिश्र कवि ललना मुख इन्दु ने दूनो लसे अरविन्द बसे चखबार सी लै । मुसकानि मनोहर जोन्ह महा कहि मिश्र जुवान सुधार सी लें ॥ तन आप करै दुति चस्पक तो सची सकुनै प्रति पारसी लै । कहि अर्थ न रूप सिपारसी याते दिखावे लला कर आरसी लै 1.१ ॥ ५८२ . मुरलीधर कवि प्रफुलित भये सब अवधपुरी के बासी प्रफुलित सरजू की सोभा सरसाई । है । नवं नर नारी अति आनंद अपार भये मत निसान मुर्शीधर मुखवाई है ॥ देता विमानन से पूजन की खुष्टि करें बन्दी दूत मागध अनेक निधि पाई है। चलि क्यों न देखे आली राम को जनम भयो दस स्थ-द्वार वाजें आनैद व पाई है ॥ १ ॥ ५८३. मोहन कवि प्राचीन जाप जयो नहिं मंत्र थप्यो नहिं वेद पुरान सुन्यो न बखानो । बीति गये दिन यहीं सधे रस मोहन मोहन के न बिकानो i। चेरो कहावत तेरो सदा पुनि और न को मैं दूसरो जानो। के तौ गरीब को लेहु निवाजि के छाँौ गरीनिवाज को वानो १ ॥ ५८४. मुकुन्द कवि प्राचीन चौका की चमक औ झमक झीने वर्मा की देह की दमक वीर काको घर खेइबो । कहत मुकुन्द गो तlात को निरास भयो वात को विसन ठयो गांत को विलोव ॥ हैं मटकाय लटकाय लट अब ह ते रुचत कुचन को है बार बार जोइवो । तब ही धौं कैती है है सर्जनी री रजनी में एक दिन साँधेरे के कंठ लागि सोवो 1१। ५८५. मलूकदास कवि चंद कलंकी कहा करि है और कोकिल कीर कपोत लाने । विद्युम हेम कैरी अहि केहरि कंजकली औ अनार के दाने ॥ १ सरबरबराबरी । २ तोता । ३ हाथी।३ सिंह ।