कवियों के जीवनचरित्र
मौजूद है । शाहजहाँ बादशाह के यहां अमरसिंह का मंनसव तीन हजारी था । अमरसिंह बहुधा सैर-शिकार में रहा करते थे। इस लिये एक दफे शाहजहां ने नाराज़ होकर कुछ जुरमाना 'किंयां; और सलावत्तखा वखशी उलमुमलिक को जुरमाना वसूल करने को नियत किया । अमरसिंह महाक्रोधाग्नि से प्रज्वलित हो दरवार में आए। पहले एक खंजर से सलावतखॉं का काम तमाम किया,पीछे शाहजहां पर भी तलवार आबदार झांढ़ी । तलवांर खंबे में लगी । बादशाह तो भाग बचे ।- अमरसिंह ने पाँच और बड़े ‘सरदार मुगलों को मारा । आप भी उसी जगह अपने साले अर्जुने गौर के हाथ से मारे गये । विस्तार के भय से मैंने संक्षेप लिखा है । ।
३६ आनंन्द कवि, सं०.१७११ में उ०. ।
कोकसार और सामुद्रिक दो ग्रन्थ इनके बनाये हैं । ४० अंबरभाट चौजीतपुर बुंदेलखण्ड़ी, सं० १६१० में उ० ।
४१ अनूप कवि, सं०१७६८ में उ°.
४२ आकुब खाँ कवि, सं० १७७५ में उ॰।
रसिकप्रिया का तिलक बनाया है । ।
३ अनबर स्त्राँ .कधि, सं०.१७८० . में, उं॰।
अनवरचन्द्रिका नाम ग्रन्थ सतसई का टीका बनाया है।।
22 आसिफ खां कवि, सं॰ ६१७३८ में उ०।.
४५ आछेलाल भाट कन्नौजवासी, ०-१८८६ में उ०।
४६ अमरजी कवि राजपूताने वाले ।
राजपूताने में ये कवीश्वर महानामी हो गजरे हैं। टाडसाहब ने राजस्थान में इनका ज़िक्र किया है ।
४७ अजीतसिंह राठौर उदयपुर के राजा, सं० १७८७ में उ०।
इन महाराज ने राजरूपकांख्यात नाम के एक ग्रन्थ बहुत बड़ा