पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४०४

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कवियों के जीवनचरित्र

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६ करनेश कवि चंदीजन असनीवाले, सं० १६११ में उ०। यह कवि नरहरि कवि के साथ दिल्ली में अकबर शाह की सभा में आते जाते थे । इन्होंने कर्ण भर्ण, श्रुतिभूषण, भूपणये, ये तीन ग्रंथ बनाये हैं ॥ ३४ सफ़ा ॥

७ करन भट्ट पन्ना निवासी, ० १७६४ में उ° ।

इन्होंने साहित्यचन्द्रिका नाम ग्रंथ बिहारीसंतसई की टीका श्रीवु देलवंशावतंस राजा सभासिंह हृदयसाहि पआनरेश की आज्ञानुसार बनाया है । पहले यह कवि काव्य पढ़ कर एक दिन पआनरेश राजा सभासिंह की सभा में गये। राजा ने यह समस्या दी, ‘बदन कैंपायो दाधि रंसना दसन सौं ।’ इसी के ऊपर करननी ने ‘बड़े- बड़े मोतिन की लत नथूनी नाक' यह कवित्त पड़ा ।राना ने बहुत प्रसन्न होकर बहुत दान-सम्मान किया ॥ २४ सफ़ा ।।

८ कर्ण ब्राह्मण बुंदेलखंडी, सं० १८५७ में उ०।

यह कवि राजा हिन्दूपति पनानरेश के यहाँ थे और साहिरयरस। रसकनोत, ये दो ग्रन्थ रखे हैं । २४ सफ़ा॥

ह करन कवि. वन्धदीजन जोधपुरवाले, सं॰ १७८७ में उ॰ ।

यह राठौर महाराजो के प्राचीन कवि हैं इन्होंने सूर्यप्रकाश नाम ग्रंथ राजा अभयसिंह राठोर की धाज्ञा के अनु मार बनाया है । इस ग्रंथ की श्लोक-संख्या ७५० है ।श्रीमहाराजा यशवन्तसिंह से लेकर महाराजा अभयसिंह तक अर्थात् संत्रत् १७८७ से सरंवलन्दखाँ की लड़ाई तक सब समाचार इस ग्रंथ में वर्णन किये हैं। एक दिन राजा अभयसिंह और महाराजा जयसिंह आमेरवाले पुष्कर-तीर्थ पर पूजन-तर्पण इत्यादि करते थे, उसी समय करन कवि गये। दोनों महाराजा बोले कविजी, कुछ शीघ्र ही कहो। करन कवि ने यह दोहा कहा-जोधपुर आमेर ये, दोनों थाप अथाप । कूरम मारा बैकरा,