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पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४१५

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शिवसिंहसरोज


७० कल्याणसिंह भट्ट ।

ऐजन ।।

७१ कामताप्रसाद ब्राह्मण लखपुरा, जिला फ़तेपुर, सं० ११११ में उ० यह महाराज साहित्य में अद्वितीय हो गये हैं। संस्कृत, प्राकृत, भाषा, फारसी, इन सबमें कविता करते थे। इनके विद्यार्थी सैकड़ों काव्यकला के महान् कवि इस समय तक विद्यमान हैं । ४७ सफ़ा ॥

७२ कृष्ण कवि, प्राचीन ।

ऐजन ।। ४३ सफ़ा ।।

१ खुमान वंदीजन चरखारी बुन्देलखण्डी सं० १८४० में उ01. बुंदेलखण्ड में आज तक यह बात विदित है कि मान जन्म से अन्धे थे। इसी कारण कुछ लिखा-पढ़ा नहीं | दैवयोग से इनके घर में एक महापुरुष संन्यासी थाये, और चार महीने तक वास कर चलने लगे । बहुतेरे चरखारी के सज्जन कवि कोविंद - महात्मा थोड़ी दूर जा जाकर संन्यासी महाराज की श्राज्ञा से अपने अपने घरों को लौट आये | खुमान साथ ही चले गये । संन्यासी ने बहुत समझाया, पर जब खुमानजी ने कहा कि हम घर में किस लिये जायँ, हम अंधे पद निकम्मे घर के काम के नहीं, “ धोबी के ऐसे गदहा न घर के न घाट के "; हम आप के संग रहेंगे, तब संन्यासी यह बात श्रवण कर बहुत प्रसन्न हो खुमान जी की जीभ में सरस्वती का मंत्र लिख बोले- प्रथम हमारे कम एडलु की प्रशंसा में कवित्त कहो । खुमानजी ने शीघ्र ही २५ कवित्त कमण्डलु के बनाये, और संन्यासी के चरणारविन्दों को दंड भरणाम कर घर कर संस्कृत और भाषा की सुंदर कविता करने लगे । एक बार सेंधिया महाराजा ग्वालियर के दरबार में गये । संधिया ने आज्ञा दी कि संस्कृत में रात भर में एक ग्रंथ बनाओ।