५३ गिरिधारी भाट, मऊ रानीपुरा । बुंदेलखंडी विद्यमान हैं।
५४ गुलावासिंह पंजाबी, सं० १८४६ में उ०।
कुरुक्षेत्र में क्षेत्रसंन्यास ले रामायण चन्द्रप्रमोध नाटक, मोक्षपंथ
भाँवरसाँवर इत्यादि नाना वेदांत के ग्रन्थ भाषा किये हैं ॥
५५ गोवर्द्धन कवि,सं० १६८८ में उ०।
५६ गोधू कवि, सं६० १७५५ में उ०।
५७ गणेशजी मिश्र, सं० १६१५ में उ० !
५८ गुलालसिंह, सं० १७८० में उ० ।
५६ गजसिंह ।
गजसिंहविलास बनाया ॥
६० ज्ञानचंद्र यती राजपूतानेवाले, सं० १८७० में उ० ।
यह कवि टाड साइब एजेंट राजपूताने के गुरु हैं और
इन्हीं की सहायता से राजपूताने के बड़े बड़े ग्रन्थ, वंशवली और
प्रबंध साहब ने उल्था किये ॥ (१)
६१ गोविंदराम चन्दीजन राजपूतानेवाले ।
झाड़ा लोगों की वंशावली और सब राजो के जीवनचरित्र का
एक ग्रन्थ हारावती इतिहास लिखा है, जिसमें राव रतन की
प्रशंसा में यह दोहा कहा है।
दोहा सरवर फूटा जल बहा, अब क्या करो जतन ।
जाता घर जहॉंगीर का, राखा राव रतन्न ॥ १ ॥
६२ गोपालासंह व्रजवासी ।
तुलसीशब्दार्थप्राकाश नाम ग्रंथ बनाया है, जिसमें आठ कवियों
को अष्टछाप के नाम से वर्णन कर उनके पद लिखे हैं। अर्थात्
सूरदास १, कृष्णदास २, परमानन्द ३, कुंभनदास ४, चतुर्भुज
५ छीतस्वामी ६, नंददास ७, गोविंददास ८ ॥
६३ गदाधर कवि ।
५६ सफ़ा।
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