पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/६

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शिवा बावनी

शिवा बावना दक है । इसके बाद महेवा नरेश छत्रसाल बुंदेला, कमाय- नरेश और बूंदी नरेश के राज्य दरबारों में भी इनका अच्छा मान हुआ। संवत् १७३७ में शिवाजी के स्वर्गवास होने पर भूषण अपने देश को चले आये और वहीं रहने लगे। इनके वंशज मध्य-प्रदेश में अब भी पाये जाते हैं। 'वृन्द सतसई' के रचयिता कवि वृन्द इन्हीं के वंश में हुए हैं। कहते हैं कि सीतल कवि भी इन्हीं के बंशज हैं। भूपण वीर रस के पूर्ण प्रतिपादक महा कवि थे। यह चापलूस नहीं थे, किन्तु बड़े ही सत्य वक्ता और निर्भय कवि थे। और सदा ही वोर रस का पक्ष लेते थे। इनकी कविता से बहुत कुछ ऐतिहासिक ज्ञान अवगत होता है। इन्होंने देश-दशा, समाजिक व्यवस्था तथा जातीय-गौरव का बड़ा ही भाव पूर्ण और हृदय-ग्राही वर्णन किया है। RSEN.