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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/१२

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इनके अतिरिक्त भी इन्होंने कुछ कविताएँ लिखी हैं । 'ऋतुसंहार' सम्भवतः उनकी प्रथम प्रकाशित रचना है जो सं० १६३२ (१८७५ ई.) में प्रकाशित हुई। उससे पूर्व प्रेमरस से पूर्ण 'प्रेमरत्नाकर' नामक दोहों की पुस्तक उन्होंने लिखी थी प्रकाशन के अयोग्य समझ कर प्रकाशित नहीं कराया । फिर कालिदास के 'मेघदूत' और 'कुमार-सम्भव' तथा 'हंसदूत' का संस्कृत से अनुवाद किया। बायरन की एक अँगरेजी कविता 'प्रिज़नर आव शिलन' का भी 'शिलन का बंदी' रूप में अनुवाद किया । प्रेमहजारा, प्रेम सम्पत्तिलता, सज्जनाष्टक, ओंकार चंद्रिका, सम्पत्ति पचासा, वानीवार्ड विलाप, प्रमिताक्षर दीपिका और श्रीरामलोचन प्रसाद का जीवनचरित आदि इनकी अन्य रचनाएँ हैं । 'सुई' नाम की एक नाटिका और कपिल के सांख्य सूत्रों का आर्या छंदों में अनुवाद भी इनकी रचनाएँ हैं जो प्रकाशित नहीं हुई।

रचना की दृष्टि से सन् १८८५-८६ इनके जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण वर्ष रहे हैं । इन वर्षों में इन्होंने 'श्यामालता', 'श्यामास्वप्न', 'श्यामा विनय, देवयानी और 'श्यामा सरोजनी' की रचना की। इन सभी रचनाओं को श्यामा को समर्पित किया गया है और इनमें प्रेम की व्यंजना बहुत उत्कृष्ट हुई है । 'श्यामालता' की रचना का आरम्भ २५ दिसम्बर १८८४ को हुआ और समय समय पर कभी शवरीनारायण में, कभी रमणीक बन, पर्वत और झरनों के किनारे इसकी रचना हुई। इसमें १३२ छंद हैं और इनमें आवे से अधिक सोना खान के विदित पर्वतों के तट पर निर्मित हुए । 'श्यामालता' के पश्चात् 'देवयानी' की रचना हुई जो महाभारत के आदि पर्व के ७३ से ८५ सर्गों तक का छंदबद्ध अनुवाद है । यह रचना सम्भवतः 'श्यामास्वप्न' और 'श्यामाविनय' की भूमिका रूप रचा गया क्योंकि 'श्यामास्वप्न' के कमलाकांत और श्यामासुंदर दोनों क्षत्रियकुमार होकर ब्राह्मणी श्यामा से प्रेम करते हैं जो तत्कालीन समाज की दृष्टि से दोष समझा गया। इस दोष का निराकरण करने के लिए